अध्याय 6

 आर.आर.जी (प्रजा अधीन समूह) समूह की तीसरी मांग – प्रजा अधीन प्रधान मंत्री, मुख्‍यमंत्री का ड्रॉफ्ट

(6.1) तीन लाइन का यह कानून प्रधानमंत्री, मुख्‍यमंत्री, जजों और पुलिस प्रमुखों में व्‍याप्‍त भ्रष्‍टाचार को केवल चार महीनों में ही कैसे कम कर सकता है ?

मान लीजिए की आपने दस लोगों को काम पर रखा है और सरकार ऐसा कायदा बनाती है कि कुछ भी हो आप उनको निकाल नहीं सकते पांच साल के लिए या पूरी जिंदगी के लिए और उनको हर महीने वेतन तो देना ही है | तो फिर आप बताएं कि कितने लोग अच्छे से काम करेंगे एक-दो महीने बाद ? मेरे अनुसार, शायद ही एक-आध व्यक्ति होगा जो अच्छे से काम करेगा जब कि उनको मालूम है कि कैसा भी बुरा काम करें, मालिक तो उसे निकाल ही नहीं सकता | इस तरह से आपके द्वारा रखे गए नौकर आपके मालिक हो जाएँगे |

ऐसे ही नेता और अन्य जनता के नौकर जैसे जज,मंत्री, अफसर आदि नेता के मालिक बन जाते हैं | लेकिन जब उन जनता द्वारा रखे गए नौकरों को , नागरकों कों  कभी भी , किसी भी दिन ,नौकरी से निकालने का अधिकार मिल जाता है, ये ही राईट टू रिकाल या प्रजा अधीन-राजा है | जिन पदों के ऊपर प्रजा अधीन-रजा या राईट टू रिकाल रखा है , उनकी सूची भाग 6.13 में है |

जिस दिन नागरिकगण प्रधानमंत्री को जनता की आवाज (सूचना का अधिकार – 2) पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली पर हस्‍ताक्षर करने पर बाध्‍य कर देंगे उसी दिन मैं प्रजा अधीन प्रधानमंत्री, प्रजा अधीन मुख्‍यमंत्री, प्रजा अधीन उच्‍चतम न्‍यायालय के न्‍यायाधीश, प्रजा अधीन उच्‍च न्‍यायालय के न्‍यायाधीश, प्रजा अधीन भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर, प्रजा अधीनजिला पुलिस प्रमुख आदि के लिए क़ानून-ड्राफ्ट को एफिडेविट के रूप में प्रस्‍तुत कर दूंगा। और यदि प्रधानमंत्री इस पर हस्‍ताक्षर नहीं भी करते हैं और मुख्‍यमंत्री इस पर हस्‍ताक्षर कर देते हैं तब भी मैं प्रजा अधीन प्रधानमंत्री, प्रजा अधीन उच्‍चतम न्‍यायालय के न्‍यायाधीश, प्रजा अधीन भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर, प्रजा अधीनजिला पुलिस प्रमुख आदि के लिए एफिडेविट प्रस्‍तुत कर दूंगा। मेरा विश्‍वास है कि करोड़ों नागरिक इन ऐफिडेविटों पर हां दर्ज कर देंगे और इस प्रकार प्रधानमंत्री, मुख्‍यमंत्री आदि इस पर हस्‍ताक्षर करने को बाध्‍य होंगे। इस प्रकार इन तीन लाइनों के कानून का प्रयोग करके हम लोग प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल (भ्रष्‍ट को बदलने का अधिकार)कानून भारत में ला सकते है। और प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल (भ्रष्‍ट को बदलने का अधिकार)एक ऐसा भय पैदा करेगा जिससे ये अधिकारी घूस/रिश्‍वत लेने का काम महीने भर में कम करने को बाध्‍य हो जाएंगे। इसलिए अगर प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल (भ्रष्‍ट को बदलने का अधिकार)कार्यकर्ता प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल (भ्रष्‍ट को बदलने का अधिकार) पर जोर दे तो प्रधानमंत्री, मुख्‍यमंत्रियों आदि में भ्रष्‍टाचार को एक महीने के भीतर ही कम किया जा सकता है, और यहां तक कि एक भी व्‍यक्‍ति का सांसद के रूप में चयन हुए बिना भी ऐसा हो सकता है।

       यदि `नागरिकों और सेना के लिए खनिज रॉयल्टी (एम आर सी एम)` समर्थक संसद में बहुमत मिलने तक इंतजार करने और तब नागरिकों और सेना के लिए खनिज रॉयल्‍टी (एम आर सी एम) लागू करने पर अड़ जाता है तो ऐसी संभावना है कि नागरिकों और सेना के लिए खनिज रॉयल्‍टी (एम आर सी एम) समर्थक को हमेशा के लिए इंतजार ही करते रहना पड़ेगा क्योंकि पहले तो उन्‍हें संसद में बहुमत ही नहीं मिलेगा। और इससे भी बुरा होगा कि यदि उन्‍हें बहुमत मिल जाता है तो (इस बात की संभावना है कि) उनके अपने ही सांसद बिक जाएंगे और नागरिकों और सेना के लिए खनिज रॉयल्टी (एम आर सी एम) क़ानून-ड्राफ्ट पारित करने से मना कर देंगे। उदाहरण के लिए वर्ष 1977 में जनता पार्टी के सांसदों ने चुनाव से पहले वायदा किया था कि वे प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल (भ्रष्‍ट को बदलने का अधिकार) कानून लागू करेंगे और चुन लिए जाने के बाद, बाद में उन्‍होंने प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल (भ्रष्‍ट को बदलने का अधिकार) कानून पास करने से मना कर दिया। इसलिए मेरे विचार से, `नागरिकों और सेना के लिए खनिज रॉयल्‍टी` (एम आर सी एम) कार्यकर्ताओं को जनता की आवाज (सूचना का अधिकार- 2) पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली  क़ानून-ड्राफ्ट पर जन-आन्‍दोलन पैदा करने पर ध्‍यान लगाना चाहिए और जनता की आवाज (सूचना का अधिकार – 2) पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली क़ानून-ड्राफ्ट पारित करवाना चाहिए न कि चुनाव में जीतने तक इंतजार करना चाहिए ।

(6.2) प्रधानमंत्री को हटाने / बदलने के क़ानून-ड्राफ्ट का विवरण

जिस तीसरी सरकारी अधिसूचना(आदेश) की मांग हम कर रहे हैं, वह एक ऐसी प्रक्रिया है जिसका प्रयोग करके हम आम आदमी 5 वर्षों तक इंतजार किए बिना प्रधानमंत्री को हटा सकते है।

  1. कोई भी नागरिक जो प्रधानमंत्री बनना चाहता हो वह अपना नाम कलक्टर के सामने प्रस्‍तुत करेगा।

  2. भारत का कोई भी नागरिक तलाटी/ पटवारी के कार्यालय में जाकर 3 रूपए का भुगतान करके अधिक से अधिक 5 व्‍यक्‍तियों को प्रधानमंत्री के पद के लिए अनुमोदित कर सकता है। तलाटी उसे उसके वोटर आईडी/मतदाता पहचान-पत्र, दिनांक और समय, और जिन व्‍यक्‍तियों के नाम उसने अनुमोदित किए है, उनके नाम, के साथ रसीद देगा।

  3. तलाटी लोगों की प्राथमिकता को सरकारी वेबसाइट पर उनके वोटर आईडी/मतदाता पहचान-पत्र के साथ डाल देगा।

  4. कोई नागरिक अपना अनुमोदन/स्वीकृति 3 रूपया शुल्‍क देकर किसी भी दिन बदल सकता है।

  5. प्रत्‍येक महीने की पहली तारीख को सचिव उम्‍मीदवारों के अनुमोदन/स्वीकृति-गिनती को प्रकाशित करेगा।

  6. प्रधानमंत्री की अनुमोदन/स्वीकृति-गिनती निम्‍नलिखित दो से उच्चतर मानी जाएगी –

  • नागरिकों की संख्‍या, जिन्‍होंने उसका अनुमोदन/स्वीकृति किया है

  • प्रधानमंत्री का समर्थन करने वाले सांसदों द्वारा प्राप्‍त किए गए कुल मतों का योग

  1. यदि किसी व्‍यक्‍ति को 15 करोड़ से ज्‍यादा अनुमोदन/स्वीकृति मिले हैं और  मौजूदा प्रधानमंत्री के मुकाबले 1.5 प्रतिशत ज्‍यादा अनुमोदन/स्वीकृति प्राप्‍त है तो वर्तमान प्रधानमंत्री इस्‍तीफा दे सकता है  और सांसदगण सबसे अधिक अनुमोदन/स्वीकृति प्राप्‍त उस व्‍यक्‍ति को प्रधानमंत्री नियुक्‍त कर देंगे।

(6.3) प्रधानमंत्री, मुख्‍यमंत्रियों को बदलने के लिए प्रस्‍तावित प्रक्रिया/तरीका का उदाहरण

मान लीजिए, भारत में 75 करोड़ मतदाता हैं। तब उपर्युक्‍त प्रक्रिया के अनुसार बदलने/हटाने का काम हो सकता है यदि मौजूदा प्रधानमंत्री की अनुमोदन/स्वीकृति-गिनती से 1.5 करोड़ अधिक मतदाताओं ने एक नए व्‍यक्‍ति का अनुमोदन/स्वीकृति कर दिया हो। उदाहरण के लिए, वर्ष 2004 के प्रधानमंत्री के पास लगभग 300 सांसदों का समर्थन था जिनके वोट लगभग 18 करोड़ होते हैं। इसलिए प्रस्‍तावित प्रक्रिया के अनुसार यदि जब 19.5 करोड़ नागरिकों ने किसी अन्य व्‍यक्‍ति को अनुमोदित कर दिया होता तो वह व्‍यक्‍ति प्रधान मंत्री बन जाता।.

क्या 19.5 करोड़ नागरिक अनुमोदन/स्वीकृति देंगे ? ये इसपर निर्भर करता है कि वर्त्तमान प्रधान मंत्री कितना बुरा है और नागरिक उससे कितना नफरत करते हैं और उसका विकल्प स्वरुप व्यक्ति कितना प्रसिद्द है |

 

(6.4) मुख्‍यमंत्री को हटाने / बदलने के क़ानून-ड्राफ्ट की अधिक जानकारी

प्रजा अधीन मुख्‍यमंत्री एक ऐसी प्रक्रिया है जिसका प्रयोग करके हम आम आदमी 5 वर्षों तक इंतजार किए बिना ही मुख्‍यमंत्री को हटा सकते है।

  1. कोई भी नागरिक जो मुख्‍यमंत्री बनना चाहता हो वह अपना नाम कलक्टर के सामने प्रस्‍तुत करेगा।

  2. भारत का कोई भी नागरिक तलाटी/ पटवारी/लेखपाल के कार्यालय में जाकर 3 रूपए का भुगतान करके अधिक से अधिक 5 व्‍यक्‍तियों को मुख्‍यमंत्री के पद के लिए अनुमोदित कर सकता है। तलाटी उसे उसके वोटर आईडी/मतदाता पहचान-पत्र, दिनांक और समय, और जिन व्‍यक्‍तियों के नाम उसने अनुमोदित किए है, उनके नाम, के साथ रसीद देगा।

  3. तलाटी लोगों की प्राथमिकता को सरकारी वेबसाइट पर उनके वोटर आईडी/मतदाता पहचान-पत्र के साथ डाल देगा।

  4. कोई नागरिक अपना अनुमोदन/स्वीकृति 3 रूपया शुल्‍क देकर किसी भी दिन बदल सकता है।

  5. प्रत्‍येक महीने की पहली तारीख को सचिव उम्‍मीदवारों के अनुमोदन/स्वीकृति-गिनती को प्रकाशित करेगा।

  6. वर्तमान मुख्‍यमंत्री की अनुमोदन/स्वीकृति-गिनती निम्‍नलिखित दो से उच्चतर मानी जाएगी –

  • नागरिकों की संख्‍या, जिन्‍होंने उसका अनुमोदन/स्वीकृति किया है

  • मुख्‍यमंत्री का समर्थन करने वाले विधायकों द्वारा प्राप्‍त किए गए कुल मतों का योग

  1. यदि किसी व्‍यक्‍ति को मौजूदा मुख्‍यमंत्री के मुकाबले 2 प्रतिशत ज्‍यादा अनुमोदन/स्वीकृति प्राप्‍त है तो वर्तमान मुख्‍यमंत्री इस्‍तीफा दे सकता है और सबसे अधिक अनुमोदन/स्वीकृति प्राप्‍त व्‍यक्‍ति मुख्यमंत्री बन जाएगा।

प्रजा अधीन राजा/राईट टू रिकाल की प्रक्रियां कैसे काम करेंगी का एक उदाहरण

प्रजा अधीन-प्रधानमंत्री की प्रक्रिया कैसे काम करेगी एक उदाहरण द्वारा समझ लेते हैं | प्रजा अधीन-मुख्यमंत्री भी उसी तरह काम करेगी| मान लीजिए, वर्त्तमान प्रधानमंत्री `क` अपना काम ठीक से नहीं कर रहा है | तो फिर वो लोगों के बीच बदनाम हो जायेगा और फिर लोग उसका विकल्प खोजेंगे | मान लीजिए दो ऐसे लोकप्रिय लोगों `ख` और `ग` ने अपना नामांकन कलेक्टर के दफ्तर जाकर कराया | फिर उनके समर्थक अपने नजदीक के पटवारी के दफ्तर जाकर तीन/एक रूपया देकर, जांच के लिए अपनी अंगुली का छाप और मतदाता कार्ड की जानकारी देकर , अपना समर्थन दर्ज कराएँगे | ये सब प्रधानमंत्री की वेबसाइट पर आ जायेगा और दुनिया भर के लाखों–करोड़ों लोग इसे देख सकेंगे कभी भी और कोई भी व्यक्ति ये भी जांच कर सकता है कि उम्मीदवार के लाखों समर्थक असली है या नहीं | अब मान लें कि वर्त्तमान प्रधानमंत्री के 15 करोड़ समर्थक थे | फिर उसके समर्थक घटकर 12 करोड़ हो जाते है और नए उम्मीदवार `ग` के 20  करोड़ समर्थक हो जाते हैं | अब ये 20 करोड़ समर्थक अपने क्षेत्र के विधायक,सांसद और प्रसिद्द लोगों पर दबाव डालेंगे `ग` को प्रधानमंत्री बनाने के लिए , उनसे ये कहकर कि करोड़ों लोग `ग` को समर्थन कर रहे हैं, आप भी जांच सकते हैं तो फिर `ग` को प्रधानमंत्री बनाएँ| इस दबाव से सांसद/विधायक वर्त्तमान प्रधानमंत्री को कहेंगे कि आप इस्तीफा दे दो और `ग` को प्रधानमंत्री बना दो , नहीं तो इतने सारे `ग` के समर्थक कुछ कर बैठेंगे , या तो हम आगे आने वाले चुनावों में बुरी तरह हारेंगे | इस तरह जनता के दबाव के कारण वर्त्तमान प्रधानमंत्री इस्तीफा दे देगा और `ग` को प्रधानमंत्री बना देगा| ध्यान दें कि आज कोई भी ऐसी प्रक्रिया नहीं है देश में जिससे ये पता लग सके कि किसी व्यक्ति के कितने समर्थक हैं ,इसीलिए जनता का दबाव नहीं बन पाता. लेकिन ये प्रजा अधीन राजा/राईट टू रिकाल प्रक्रियाओं द्वारा जनता राजनैतिक दबाव बना सकेगी |

अक्सर पूछी जाने वाले प्रश्नों प्रजा अधीन राजा/राईट टू रिकाल/`भ्रष्ट को बदलने का आम नागरिक का अधिकार`  और `पारदर्शी शिकायत प्रणाली ` पर देखें इस लिंक को डाउनलोड करके – www.righttorecall.info/004.h.pdf

अधिकारी को बदलने के लिए कम से कम नागरिकों के अनुमोदनों की संख्या/सीमा क्या होनी चाहिए प्रजा अधीन-राजा (भ्रष्ट को बदलने का अधिकार नागरिकों द्वारा)

वैसे तो `प्रजा अधीन-राजा के क़ानून-ड्राफ्ट में जो नागरिकों की कम से कम संख्या जो होनी चाहिए (सीमा) , वर्त्तमान अधिकारी को इस्तीफ़ा देने के लिए ,वो अधिकारी पर बाध्य/जरूरी नहीं है और केवल अधिकारी को सही फैसला लेने के लिए ही है , लेकिन ये सीमा क्या होनी चाहिए प्रजा अधीन-राजा के क़ानून-ड्राफ्ट में ?

ये सीमा 20-50% होगी , जो `पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली (सिस्टम) द्वारा तय की जायेगी | और , जिला स्तर पर , ये संख्या सीमा कम से कम 50%  होनी चाहिए , क्योंकि कुछ जातियों की 20% आबादी भी होती है ,जिलों में | राज्य स्तर पर ये 35% और राष्ट्रीय स्तर पर 20 % उचित है|

 

(6.5) क्‍या प्रधानमंत्री, मुख्‍यमंत्री हर सप्‍ताह बदले जाएंगे ? नहीं ।

अधिकतर कम्‍पनियों में, नियोक्‍ताओं/मालिकों को कर्मचारियों को हटाने का अधिकार होता है और इसका यह मतलब कभी नहीं है कि नियोक्‍ता/मालिक हर दिन कर्मचारी को निकालता ही रहता है। कम से कम, ज्‍यादातर नियोक्‍ता स्‍थायी कर्मचारी की ही तलाश में रहते हैं और उन्‍हें केवल तभी हटाते है जब वे कुछ बहुत ही बड़ा नुकसान जानबुझकर कर देते हैं। नागरिकगण इस प्रक्रिया/तरीके का प्रयोग किसी ऐसे मुख्‍यमंत्री को हटाने के लिए नहीं करेंगे जिन्हें वे नहीं चाहते और ऐसे मुख्‍यमंत्री को भी नहीं हटाएंगे जिसने कोई गलती की हो । वे इसका उपयोग केवल तभी करेंगे जब उन्‍हें लगेगा कि कोई मुख्‍यमंत्री, प्रधानमंत्री बिलकुल ही भ्रष्‍ट और जनता का विरोधी हो चुका है। किसी को हटाने की बात दिमाग में तब आती है जब उसके लिए अत्‍यधिक घृणा पैदा हो और ऐसी घृणा किसी छोटी गलती के कारण नहीं आती बल्‍कि केवल तभी आएगी जब वह पीठ में छूरा घोंपने जैसी कोई बड़ी गलती करे।

अमेरिका में लगभग 20 राज्‍यों में गवर्नर/राज्‍यपाल को हटाने की प्रक्रिया लागू है। उन राज्‍यों में पिछले 100 वर्षों में कम से कम लगभग 20*100/4= लगभग 500 गवर्नरों ने पद सम्‍हाला होगा। कितनों ने रिकॉल मतदान का सामना किया? केवल तीन ने। और वास्‍तव में कितने गवर्नरों को उनके पदों से हटाया गया? केवल एक को। इसलिए इस तरीके/तंत्र ने कोई अस्‍थिरता पैदा नहीं की बल्‍कि इसने अमेरिका के उन सभी गवर्नरों पर छिपे रूप से खतरे के रूप में काम किया जो इस बात का एक महत्‍वपूर्ण कारण है कि क्‍यों अमेरिका के गवर्नर भारत के मुख्‍यमंत्री से कम भ्रष्‍ट हैं।

(6.6) प्रधानमंत्री को बदलने (राइट टू रिकॉल प्रधानमंत्री) का प्रारूप / क़ानून-ड्राफ्ट

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निम्नलिखित के लिए प्रक्रिया

प्रक्रिया/अनुदेश

1

नागरिक शब्‍द का मतलब/अर्थ रजिस्टर्ड वोटर/मतदाता है।

ये सरकारी अधिसूचना(आदेश) तब प्रभावी माना जाएगा जब 37 करोड़ नागरिकों ने इसमें अपना `हाँ` दर्ज करवा दिया हो।

2

जिला कलक्टर

30 वर्ष से अधिक उम्र का कोई भी नागरिक जो प्रधानमंत्री बनना चाहता हो वह मंत्रिमंडल सचिव के समक्ष/ कार्यालय जा सकता है। मंत्रिमंडल सचिव सांसद के चुनाव के लिए जमा की जाने वाली वाली धनराशि के बराबर शुल्‍क लेकर उसे एक सीरियल नम्‍बर जारी करेगा।

3

तलाटी (अथवा तलाटी का क्‍लर्क)

भारत का कोई भी नागरिक तलाटी/ पटवारी के कार्यालय में जाकर 3 रूपए का भुगतान करके अधिक से अधिक 5 व्‍यक्‍तियों को प्रधानमंत्री के पद के लिए अनुमोदित कर सकता है। तलाटी उसके अनुमोदन/स्वीकृति को कम्‍प्‍युटर में डाल देगा और उसे उसके वोटर आईडी/मतदाता पहचान-पत्र, दिनांक और समय, और जिन व्‍यक्‍तियों के नाम उसने अनुमोदित किए है, उनके नाम, के साथ रसीद देगा। (गरीबी रेखा से नीचे) बी पी एल कार्डधारकों के लिए शुल्‍क/फीस 1 रूपया होगी।   यदि कोई नागरिक अपने अनुमोदन/स्वीकृति रद्द करने के लिए आता है तो तलाटी उसके  एक या अधिक अनुमोदनों को बिना कोई शुल्‍क लिए बदल देगा।

4

तलाटी

वह तलाटी नागरिकों की पसंद/प्राथमिकता को प्रधानमन्त्री के वेबसाइट पर उनके वोटर आईडी/मतदाता पहचान-पत्र और उसकी प्राथमिकताओं के साथ डाल देगा।

5

मंत्रिमंडल सचिव

प्रत्‍येक सोमवार को मंत्रिमंडल सचिव हरेक उम्‍मीदवार के अनुमोदन/स्वीकृति-गिनती को प्रकाशित करेगा। .

6

प्रधानमंत्री

पहला प्रधानमंत्री अपनी अनुमोदन/स्वीकृति–गिनती को निम्‍नलिखित दो से उच्चतर मान सकता है

  • नागरिकों की संख्‍या, जिन्‍होंने उसका अनुमोदन/स्वीकृति किया है

  • प्रधानमंत्री का समर्थन करने वाले  लोकसभा के सांसदों द्वारा प्राप्‍त किए गए कुल मतों का योग

7

प्रधानमंत्री

यदि किसी व्‍यक्‍ति को मौजूदा प्रधानमंत्री के मुकाबले 2 प्रतिशत ज्‍यादा अनुमोदन/स्वीकृति प्राप्‍त है तो वर्तमान प्रधानमंत्री इस्‍तीफा दे सकता है  और सांसदों से कह सकता है  कि वे  सबसे अधिक अनुमोदन/स्वीकृति प्राप्‍त व्‍यक्‍ति को नया प्रधानमंत्री नियुक्‍त कर दें।

8

लोकसभा के सांसद

सांसदगण कलम/खंड  7 में उल्‍लिखित व्‍यक्‍ति/सबसे अधिक अनुमोदन/स्वीकृति प्राप्‍त व्‍यक्‍ति को नया प्रधानमंत्री नियुक्‍त कर सकते हैं

9

जिला कलेक्‍टर

यदि कोई नागरिक इस कानून में कोई बदलाव चाहता है तो वह जिलाधिकारी/डी सी के कार्यालय में जाकर एक एफिडेविट जमा करा सकता है और डी सी या उसका क्लर्क उस एफिडेविट को 20 रूपए प्रति पृष्‍ठ/पेज का शुल्‍क लेकर प्रधानमंत्री की वेबसाईट पर डाल देगा।

10

तलाटी (या

पटवारी)

यदि कोई नागरिक इस कानून या इसकी किसी धारा के विरूद्ध अपना विरोध दर्ज कराना चाहे अथवा वह उपर के कलम/खंड  में प्रस्‍तुत किसी एफिडेविट पर हां – नहीं दर्ज कराना चाहे तो वह अपने वोटर आई कार्ड के साथ तलाटी के कार्यालय में आकर 3 रूपए का शुल्‍क देगा। तलाटी हां-नहीं दर्ज कर लेगा और उसे एक रसीद/पावती देगा। यह हां – नहीं प्रधानमंत्री की वेबसाईट पर डाला जाएगा।

सैक्शन- सी.वी. (जनता की आवाज़)

सी वी – 1

जिला कलेक्टर

यदि कोई गरीब, दलित, महिला, वरिष्‍ठ नागरिक या कोई भी नागरिक इस कानून में बदलाव/परिवर्तन चाहता हो तो वह जिला कलेक्‍टर के कार्यालय में जाकर एक ऐफिडेविट/शपथपत्र प्रस्‍तुत कर सकता है और जिला कलेक्टर या उसका क्‍लर्क इस ऐफिडेविट/हलफनामा को 20 रूपए प्रति पृष्‍ठ/पन्ने का शुल्‍क/फीस लेकर प्रधानमंत्री की वेबसाईट पर डाल देगा।

सी वी – 2

तलाटी (अथवा पटवारी/लेखपाल )

यदि कोई गरीब, दलित, महिला, वरिष्‍ठ नागरिक या कोई भी नागरिक इस कानून अथवा इसकी किसी धारा पर अपनी आपत्ति दर्ज कराना चाहता हो अथवा उपर के क्‍लॉज/खण्‍ड में प्रस्‍तुत किसी भी ऐफिडेविट/शपथपत्र पर हां/नहीं दर्ज कराना चाहता हो तो वह अपना मतदाता पहचानपत्र/वोटर आई डी लेकर तलाटी के कार्यालय में जाकर 3 रूपए का शुल्‍क/फीस जमा कराएगा। तलाटी हां/नहीं दर्ज कर लेगा और उसे इसकी पावती/रसीद देगा। इस हां/नहीं को प्रधानमंत्री की वेबसाईट पर डाल दिया जाएगा।

प्रश्न- एक छोटे गांव का वासी को राष्ट्रिय स्तर के आधार वाले राजनैतिक व्यक्ति जैसे प्रधानमन्त्री के बारे में जानकारी कैसे मिलेगी और उसका चुनाव कैसे लेगा ?

ये जायज प्रश्न हो सकता है कि गांव के भोले-भाले वासी , एक राष्ट्रिय स्तर के पद जैसे प्रधानमंत्री के लिए सही जानकारी कैसे मिलेगी और वो निर्णय और चुनाव कैसे करेगा?

आज जो भी जानकारी गांव के वासी को ,अपने से दूर के क्षेत्र/जगह की मिलती है, वो समाचार-पत्र , टी.वी. या अन्य मीडिया द्वारा मिलती है | अब मीडिया द्वारा किसी दूर-दराज के इलाके की जानकारी विश्वसनीय अधिकतर नहीं होती है क्योंकि मीडिया बिकी हुई है, जो उसको पैसे देता है, उसी के अनुसार समाचार देती है | लेकिन `जनता की आवाज़-पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली(सिस्टम)` और उसके द्वारा `प्रजा अधीन-प्रधानमंत्री` आ जाने के बाद कोई भी व्यक्ति हलफनामे/एफिडेविट में कोई भी व्यक्ति के बारे में जानकारी / समाचार दे सकता है और यदि वो लाखों लोग, जिनकी वोटर कार्ड ,अंगुली की छाप द्वारा पटवारी दफ्तर में जाकर जांच हुई हो, ने समर्थन किया हो तो , उस समाचार का गांव का आदमी भी विश्वास कर सकता है और इस व्यवस्था के आने से बड़े आराम से ये खबर गांव के आदमी तक पहुँच जायेगी | दूसरे शब्दों में ये प्रक्रियाएं एक `विकल्प मीडिया` भी हैं , जो सही , जाँची हुई और तेजी से समाचार देंगे |

 

(6.7) क्या होगा यदि प्रधानमंत्री और सांसद जनता का कहा नहीं मानें?

कोई व्‍यक्‍ति पूछ सकता है- तब क्‍या होगा जब प्रधानमंत्री और सांसद उपर प्रस्‍तावित सरकारी अधिसूचना(आदेश) के कलम/खंड 7, कलम/खंड 8 का पालन न करेंगे।

देखिए, यदि मतदाताओं के एक बहुत बड़े प्रतिशत भाग ने किसी व्‍यक्‍ति को स्पष्ट  रजिस्‍ट्रेशन द्वारा अनुमोदित किया है तो यह प्रधानमंत्री और सांसद के लिए तब राजनीतिक (और वास्‍तविक) जीवन का अंत होगा जब वे अनुमोदित व्‍यक्‍ति को प्रधानमंत्री के रूप में नियुक्‍त करने से इनकार कर देते हैं । हम लोग अपनी चर्चा को राजनीतिक रूप से वास्‍तविक परिदृश्‍यों तक सीमित रखेंगे और सांसदों का मतदाताओं के इतने बड़े प्रतिशत की स्पष्ट रूप से साबित, लिखित राजनैतिक मांग को नजरअंदाज करना अस्‍वभाविक स्‍थिति है।

(6.8) कृपया प्रजा अधीन प्रधान मंत्री (भ्रष्ट प्रधानमन्त्री को बदलने) के कानून, जिसका प्रस्‍ताव मैंने किया है, उसके अंतिम दो खंड पर ध्‍यान दें

कृपया उस प्रस्‍तावित क़ानून-ड्राफ्ट /प्रारूप के अंतिम दो कलम/खंड पर ध्‍यान दीजिए । ये दो कलम/खंड `जनता की आवाज` (पारदर्शी शिकायत / प्रस्ताव प्रणाली(सिस्टम)) के अलावा कुछ नहीं है । मेरे प्रत्‍येक क़ानून-ड्राफ्ट में दो पंक्‍तियों को दोहराया गया है। यह दोहराव क्‍यों है? क्योंकि मैं बार-बार फिर से और हजारों बार फिरसे दोहरान चाहता हूँ कि हम भारत के आम जनों को अधिकार है भारत सरकार के पुस्तकों पर अपना मतभेद दर्ज करने के लिए और इसीलिए हमारे पास अपने मतभेद दर्ज करने के लिए प्रक्रिया होनी चाहिए |सांकेतिक मूल्‍यों को एक ओर छोड़िए, इस दोहराव का राजनैतिक महत्‍व भी है। यह हो सकता है कि एक `प्रजा अधीन राजा/राईट टू रिकाल ` (आर.टी.आर) कार्यकर्ता को `प्रजा अधीन राजा/राईट टू रिकाल ` (आर.टी.आर) विरोधी बुद्धिजीवियों से लड़ाई लड़नी पड़े। तब `प्रजा अधीन राजा/राईट टू रिकाल ` (आर.टी.आर)  कार्यकर्ता उसे इस कानून का वैसा क़ानून-ड्राफ्ट उपलब्‍ध कराने की चुनौती दे सकता है जो वह चाहता है और तब उनसे 6.9 और 6.10 की लाइने(आखरी दो लाइनें) जोड़ने को कह सकता है। यदि विरोधी पक्ष अंतिम दो लाइनों को जोड़े जाने का विरोध करता है तो उसपर आम आदमी का विरोधी होने का आरोप लगाया जा सकता है। और यदि वह इन दो पंक्‍तियों के जोड़े जाने को स्‍वीकार करता है तब परिणामस्‍वरूप उसका प्रस्तावित कानून इस जनता की आवाज (पारदर्शी शिकायत / प्रस्ताव प्रणाली(सिस्टम)) पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली  को लागू करेगा जिसका उपयोग करके मेरे द्वारा प्रस्‍तावित सभी कानूनों को जनता की हां का उपयोग करके लाया जा सकता है।

दो लाइनों का यह जोड़ दर्शाता है कि जनता की आवाज (पारदर्शी शिकायत / प्रस्ताव प्रणाली(सिस्टम)) पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली  के लिए मांग केवल कोई दोहराया गया सकारात्‍मक संकल्‍पना ही नहीं है बल्‍कि जनता की आवाज (पारदर्शी शिकायत / प्रस्ताव प्रणाली(सिस्टम)) पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली  एक ऐसा कानून है जिसे किसी भी अन्य कानून में इसके अपने प्रभाव को कम किए बगैर जोड़ा जा सकता है। और इन दो पंक्‍तियो का जोड़ा जाना किसी भी अलोकतांत्रिक कानून को बाहर का रास्‍ता दिखलाने के लिए पर्याप्‍त है । क्‍योंकि यदि किसी अलोकतांत्रिक कानून में ये दो पंक्‍तियां शामिल हैं तो इसे कुछ ही दिनों या कुछ ही सप्‍ताह के में नागरिकों द्वारा नकार दिया जाएगा।

                        ये अंतिम दो लाइनें ये भी बताती है कि जनता की आवाज (सूचना का अधिकार – 2) पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली  किसी भी प्रकार के जहर के लिए विषनाशक की तरह है । एक अच्छा विषनाशक क्या है ? एक शक्तिशाली विषनाशक को यदि द्रव से भरे गिलास में डाला जाता है तो यह कोई हानि नहीं पहुँचायेगा तथा गिलास में उपस्थित किसी भी प्रकार के जहर को खत्म कर देगा । जनता की आवाज (सूचना का अधिकार – 2) पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली  की ये दो धाराएँ/खंड किसी भी कानून के साथ जुड़ सकती हैं तथा इनके अंदर ऐसी क्षमता है कि यदि कानून अच्छा है तो ये खतरा पैदा नहीं करती पर यदि कानून खराब है तो इसकी धाराएँ ये सुनिश्चित करती हैं कि नागरिक इन कानूनों को खत्म कर सकें । इसलिए जनता की आवाज (सूचना का अधिकार – 2) पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली की इन धाराओं को मैं शक्तिशाली/उपयुक्‍त विषनाशक कहता हूँ ।

(6.9) राइट टू रिकॉल / प्रजा अधीन-मुख्‍यमंत्री का क़ानून-ड्रॉफ्ट

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निम्नलिखित के लिए प्रक्रिया

प्रक्रिया/अनुदेश

1

नागरिक शब्‍द का मतलब/अर्थ रजिस्टर्ड वोटर/मतदाता है।

सरकारी अधिसूचना(आदेश) तब प्रभावी माना जाएगा जब —- करोड़ से अधिक नागरिकों ने इसमें अपना `हाँ` दर्ज करवा दिया हो।

2

जिला कलक्टर

30 वर्ष से अधिक उम्र का कोई भी नागरिक जो मुख्‍यमंत्री बनना चाहता हो वह  जिला कलक्टर के समक्ष/कार्यालय जा सकता है। जिला कलक्टर विधायक के चुनाव के लिए जमा की जाने वाली वाली धनराशि के बराबर शुल्‍क लेकर उसे एक सीरियल नम्‍बर जारी करेगा।

3

तलाटी (अथवा तलाटी का क्‍लर्क)

भारत का कोई भी नागरिक तलाटी/ पटवारी के कार्यालय में जाकर 3 रूपए का भुगतान करके अधिक से अधिक 5 व्‍यक्‍तियों को मुख्‍यमंत्री के पद के लिए अनुमोदित कर सकता है। तलाटी उसके अनुमोदन/स्वीकृति को कम्‍प्‍युटर में डाल देगा और उसे उसके वोटर आईडी/मतदाता पहचान-पत्र, दिनांक और समय, और जिन व्‍यक्‍तियों के नाम उसने अनुमोदित किए है, उनके नाम, के साथ बिना कोई शुल्‍क लिए रसीद देगा।

4

तलाटी

वह तलाटी नागरिकों की पसंद/प्राथमिकता को मुख्यमंत्री के वेबसाइट पर उनके वोटर आईडी/मतदाता पहचान-पत्र और उसकी प्राथमिकताओं के साथ डाल देगा।

5

मंत्रिमंडल सचिव

प्रत्‍येक सोमवार को मंत्रिमंडल सचिव हरेक उम्‍मीदवार की अनुमोदन/स्वीकृति-गिनती को प्रकाशित करेगा। .

6

मुख्यमंत्री

पहला मुख्‍यमंत्री अपनी अनुमोदन/स्वीकृति – गिनती को निम्‍नलिखित दो से उच्चतर मान सकता है

  • नागरिकों की संख्‍या जिन्‍होंने उसका अनुमोदन/स्वीकृति किया है

  • मुख्यमंत्री का समर्थन करने वाले  विधायकों द्वारा प्राप्‍त किए गए मतों का योग

7

मुख्‍यमंत्री

यदि किसी व्‍यक्‍ति को मौजूदा मुख्‍यमंत्री के मुकाबले (सभी रजिस्‍टर्ड मतदाताओं के) 2 प्रतिशत ज्‍यादा अनुमोदन/स्वीकृति प्राप्‍त है तो वर्तमान मुख्‍यमंत्री इस्‍तीफा दे सकता है और विधायकों से कह सकता है  कि वे  सबसे अधिक अनुमोदन/स्वीकृति प्राप्‍त व्‍यक्‍ति को नया मुख्‍यमंत्री नियुक्‍त कर दें।

8

विधायकगण

विधायकगण कलम/खंड 7 में उल्‍लिखित व्‍यक्‍ति/सबसे अधिक अनुमोदन/स्वीकृति प्राप्‍त व्‍यक्‍ति को नया मुख्‍यमंत्री नियुक्‍त कर सकते हैं

9

जिला कलेक्‍टर

यदि कोई नागरिक इस कानून में कोई बदलाव चाहता है तो वह जिलाधिकारी/डी सी के कार्यालय में जाकर एक एफिडेविट जमा करा सकता है और डी सी या उसका क्लर्क उस एफिडेविट को 20 रूपए प्रति पृष्‍ठ/पेज का शुल्‍क लेकर मुख्‍यमंत्री की वेबसाईट पर डाल देगा।

10

तलाटी (या

पटवारी)

यदि कोई नागरिक इस कानून या इसकी किसी धारा के विरूद्ध अपना विरोध दर्ज कराना चाहे अथवा वह उपर के कलम/खंड  में प्रस्‍तुत किसी एफिडेविट पर हां – नहीं दर्ज कराना चाहे तो वह अपने वोटर आई कार्ड के साथ तलाटी के कार्यालय में आकर 3 रूपए का शुल्‍क देगा। तलाटी हां-नहीं दर्ज कर लेगा और उसे एक रसीद/पावती देगा। यह हां – नहीं मुख्‍यमंत्री की वेबसाईट पर डाला जाएगा।

सैक्शन-सी.वी (जनता की आवाज़)

सी वी – 1

जिला कलेक्टर

यदि कोई गरीब, दलित, महिला, वरिष्‍ठ नागरिक या कोई भी नागरिक इस कानून में बदलाव/परिवर्तन चाहता हो तो वह जिला कलेक्‍टर के कार्यालय में जाकर एक ऐफिडेविट/शपथपत्र प्रस्‍तुत कर सकता है और जिला कलेक्टर या उसका क्‍लर्क इस ऐफिडेविट/हलफनामा को 20 रूपए प्रति पृष्‍ठ/पन्ने का शुल्‍क/फीस लेकर प्रधानमंत्री की वेबसाईट पर डाल देगा।

सी वी – 2

तलाटी (अथवा पटवारी/लेखपाल)

यदि कोई गरीब, दलित, महिला, वरिष्‍ठ नागरिक या कोई भी नागरिक इस कानून अथवा इसकी किसी धारा पर अपनी आपत्ति दर्ज कराना चाहता हो अथवा उपर के क्‍लॉज/खण्‍ड में प्रस्‍तुत किसी भी ऐफिडेविट/शपथपत्र पर हां/नहीं दर्ज कराना चाहता हो तो वह अपना मतदाता पहचानपत्र/वोटर आई डी लेकर तलाटी के कार्यालय में जाकर 3 रूपए का शुल्‍क/फीस जमा कराएगा। तलाटी हां/नहीं दर्ज कर लेगा और उसे इसकी पावती/रसीद देगा। इस हां/नहीं को प्रधानमंत्री की वेबसाईट पर डाल दिया जाएगा।

(6.10) तब क्‍या होगा जब मुख्‍यमंत्री, विधायक नागरिकों की बात न मानें?

कोई व्‍यक्‍ति पूछ सकता है- तब क्‍या होगा जब मुख्‍यमंत्री और विधायकगण उपर प्रस्‍तावित सरकारी अधिसूचना(आदेश) के कलम/खंड  7, कलम/खंड  8 का पालन नहीं करेंगे।

       देखिए, यदि मतदाताओं के एक बहुत बड़े प्रतिशत भाग ने किसी व्‍यक्‍ति को स्पष्ट  रजिस्‍ट्रेशन द्वारा अनुमोदित किया है तो यह मुख्यमंत्री और विधयकों के लिए तब राजनीतिक (और वास्‍तविक) जीवन का अंत होगा जब वे अनुमोदित व्‍यक्‍ति को प्रधानमंत्री के रूप में नियुक्‍त करने से इनकार कर देते हैं । हम लोग अपनी चर्चा को राजनीतिक रूप से वास्‍तविक परिदृश्‍यों तक सीमित रखेंगे और सांसदों और विधायकों का मतदाताओं के इतने बड़े प्रतिशत की स्पष्ट रूप से साबित, लिखित राजनैतिक मांग को नजरअंदाज करना अस्‍वभाविक स्‍थिति है ।

(6.11) राइट टू रिकॉल / प्रजा अधीन नगर महापौर का क़ानून-ड्रॉफ्ट / प्रारूप

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निम्नलिखित के लिए प्रक्रिया

प्रक्रिया/अनुदेश

1

नागरिक शब्‍द का मतलब/अर्थ रजिस्टर्ड वोटर/मतदाता है।

सरकारी अधिसूचना(आदेश) तब प्रभावी माना जाएगा जब —- लाख से अधिक नागरिकों ने इसमें अपना `हाँ` दर्ज करवा दिया हो।

2

नगर आयुक्‍त/कमिश्नर (एम सी)(Municipal Comissioner)

30 वर्ष से अधिक उम्र का कोई भी नागरिक जो महापौर बनना चाहता हो वह नगर आयुक्‍त (एम सी)(Municipal comissioner) के समक्ष/कार्यालय जा सकता है। नगर आयुक्‍त (एम सी) विधायक के चुनाव के लिए जमा की जाने वाली वाली धनराशि के बराबर शुल्‍क लेकर उसे एक सीरियल नम्‍बर जारी करेगा।

3

नागरिक/नगर केन्‍द्र (सीविक सेन्‍टर) क्‍लर्क

यदि उस जिले का कोई भी नागरिक चाहे तो वह नगर केन्‍द्र(Civic Center)  में जाकर 3 रूपए का भुगतान करके अधिक से अधिक 5 व्‍यक्‍तियों को महापौर के पद के लिए अनुमोदित कर सकता है। नगर केन्‍द्र/सीविक सेन्‍टर क्‍लर्क उसके अनुमोदन/स्वीकृति को कम्‍प्‍युटर में डाल देगा और उसे उसके मतदाता पहचान-पत्र, दिनांक और समय, और जिन व्‍यक्‍तियों के नाम उसने अनुमोदित किए है, उनके नाम, के साथ बिना कोई शुल्‍क लिए रसीद देगा। यदि कोई नागरिक अपने अनुमोदन/स्वीकृति रद्द करने के लिए आता है तो वह क्‍लर्क उसके  एक या अधिक अनुमोदनों को बिना कोई शुल्‍क लिए बदल देगा।

4

नागरिक/नगर केन्‍द्र (सीविक सेन्‍टर) क्‍लर्क

वह नगर केन्‍द्र/सीविक सेन्‍टर क्‍लर्क नागरिकों की पसंद/प्राथमिकता को नगर की वेबसाइट पर उनके वोटर आईडी/मतदाता पहचान-पत्र और उसकी प्राथमिकताओं के साथ डाल देगा।

5

नगर आयुक्‍त (एम सी)

प्रत्‍येक सोमवार को नगर आयुक्‍त (एम सी) हरेक उम्‍मीदवार के अनुमोदन/स्वीकृति-गिनती/संख्या को प्रकाशित करेगा। .

6

महापौर

पहला महापौर अपनी अनुमोदन/स्वीकृति – गिनती को निम्‍नलिखित दो से उच्चतर मान सकता है

  • नागरिकों की संख्‍या जिन्‍होंने उसका अनुमोदन/स्वीकृति किया है

  •  समर्थन करने वाले  कारपोरेटरों/पार्षदों द्वारा प्राप्‍त किए गए मतों का योग

7

महापौर

यदि किसी व्‍यक्‍ति को मौजूदा महापौर के मुकाबले (सभी रजिस्‍टर्ड मतदाताओं के) 2 प्रतिशत ज्‍यादा अनुमोदन/स्वीकृति प्राप्‍त है तो वर्तमान महापौर इस्‍तीफा दे सकता है और पार्षदों से अनुरोध कर सकता है  कि वे  सबसे अधिक अनुमोदन/स्वीकृति प्राप्‍त व्‍यक्‍ति को महापौर नियुक्‍त कर दें।

8

पार्षद

पार्षदगण कलम/खंड 7 में उल्‍लिखित व्‍यक्‍ति/सबसे अधिक अनुमोदन/स्वीकृति प्राप्‍त व्‍यक्‍ति को नया महापौर नियुक्‍त कर सकते हैं

9

जिला कलेक्‍टर

यदि कोई नागरिक इस कानून में कोई बदलाव चाहता है तो वह जिलाधिकारी/डी सी के कार्यालय में जाकर एक एफिडेविट जमा करा सकता है और डी सी या उसका क्लर्क उस एफिडेविट को 20 रूपए प्रति पृष्‍ठ/पेज का शुल्‍क लेकर मुख्‍यमंत्री की वेबसाईट पर डाल देगा।

10

तलाटी (या

पटवारी)

यदि कोई नागरिक इस कानून या इसकी किसी धारा के विरूद्ध अपना विरोध दर्ज कराना चाहे अथवा वह उपर के कलम/खंड  में प्रस्‍तुत किसी एफिडेविट पर हां – नहीं दर्ज कराना चाहे तो वह अपने वोटर आई कार्ड के साथ तलाटी के कार्यालय में आकर 3 रूपए का शुल्‍क देगा। तलाटी हां-नहीं दर्ज कर लेगा और उसे एक रसीद/पावती देगा। यह हां – नहीं मुख्‍यमंत्री की वेबसाईट पर डाला जाएगा।

सैक्शन- सी.वी.(जनता की आवाज़)

सी वी – 1

जिला कलेक्टर

यदि कोई गरीब, दलित, महिला, वरिष्‍ठ नागरिक या कोई भी नागरिक इस कानून में बदलाव/परिवर्तन चाहता हो तो वह जिला कलेक्‍टर के कार्यालय में जाकर एक ऐफिडेविट/शपथपत्र प्रस्‍तुत कर सकता है और जिला कलेक्टर या उसका क्‍लर्क इस ऐफिडेविट/हलफनामा को 20 रूपए प्रति पृष्‍ठ/पन्ने का शुल्‍क/फीस लेकर प्रधानमंत्री की वेबसाईट पर डाल देगा।

सी वी – 2

तलाटी (अथवा पटवारी/लेखपाल

यदि कोई गरीब, दलित, महिला, वरिष्‍ठ नागरिक या कोई भी नागरिक इस कानून अथवा इसकी किसी धारा पर अपनी आपत्ति दर्ज कराना चाहता हो अथवा उपर के क्‍लॉज/खण्‍ड में प्रस्‍तुत किसी भी ऐफिडेविट/शपथपत्र पर हां/नहीं दर्ज कराना चाहता हो तो वह अपना मतदाता पहचानपत्र/वोटर आई डी लेकर तलाटी के कार्यालय में जाकर 3 रूपए का शुल्‍क/फीस जमा कराएगा। तलाटी हां/नहीं दर्ज कर लेगा और उसे इसकी पावती/रसीद देगा। इस हां/नहीं को प्रधानमंत्री की वेबसाईट पर डाल दिया जाएगा।

(6.12) प्रजा अधीन-सांसद क़ानून-ड्राफ्ट (भ्रष्ट सांसद को नागरिकों द्वारा बदलने का अधिकार)

 

1. (1.1) शब्द `नागरिक` का मतलब रजिस्ट्रीकृत मतदाता है |

(1.2) शब्द “कर सकता है “ का मतलब कोई भी नैतिक-कानूनी बंधन नहीं है | इस का मतलब “ कर सकता है “ या “करने की आवश्यकता / जरूरत नहीं है “ है |

2. (जिला कलेक्टर को निर्देश/आर्डर ) प्रधानमंत्री जिला कलेक्टर को निर्देश देते हैं, कि यदि भारत का नागरिक जिला कलेक्टर के दफ्तर आता है और उम्मीदवार बनना चाहता है आने वाले सांसद के चुनाव में, तब जिला कलेक्टर , सांसद-चुनाव के जमा-राशि जितना शुल्क/फीस लेगा और उस व्यक्ति को `उम्मीदवार-आने वाले चुनाव में ` घोषित करेगा , सांसद के चुनाव के लिए | जिला कलेक्टर एक सीरियल नंबर/क्रम संख्या देगा और उसका नाम प्रधान मंत्री के वेबसाइट पर डालेगा |

3. ( तलाटी ,पटवारी या (उसके क्लर्क) को निर्देश )

(3.1) प्रधानमंत्री पटवारी (या तलाटी या गाँव का अधिकारी ) को निर्देश देगा कि नागरिक यदि खुद पटवारी के दफ्तर आता है, रु. 3 शुल्क/फीस देता है, और कम से कम पांच व्यक्तियों को अनुमोदन/स्वीकृति देता है सांसद के पद के लिए, तो पटवारी उसके स्वीकृति/पसंद/अनुमोदन कंप्यूटर में डालेगा और उसको एक रसीद देगा, जिसमें लिखा होगा ,उसकी वोटर आई.डी संख्या, तारीख/समय और जिन व्यक्तियों को उसने पसंद किया है  |

 

(3.2) यदि पटवारी के पास कंप्यूटर आदि नहीं है, तब जिला कलेक्टर इस कार्य को तहसीलदार के दफ्तर को देगा , जब तक कि पटवारी को कंप्यूटर, आदि नहीं मिलता इस कार्य को करने के लिए |

(3.3)  जिला कलेक्टर एक ऐसा सिस्टम बना सकता है जो एस.एम.एस जानकारी देगा नागरिक को `क्रेडिट कार्ड लेन-देन` के समान होगा |

(3.4) जिला कलेक्टर उपकरण/मशीन पटवारी को देगा , जो फोटो और अंगुली की छाप लेगा और रसीद देगा नागरिक के अंगुली की छाप और फोटो के साथ |

(3.5) प्रधानमंत्री का सचिव जरूरी सॉफ्टवेर (कंप्यूटर का अंदरूनी सामान) देगा पटवारी और जिला कलेक्टर, पटवारी को जरूरी मशीन देगा |

4.(तलाटी/पटवारी को निर्देश ) पटवारी नागरिकों के अनुमोदन/पसंद प्रधानमंत्री के वेबसाइट पर रखेगा , नागरिक के वोटर आई.डी. नंबर और उन व्यक्तियों के नाम , जिनको उसने अनुमोदन/पसंद किया है |

 5. (तलाटी/पटवारी को निर्देश ) यदि वोटर अपने अनुमोदन रद्द करने आता है, तो तलाटी एक या अधिक अनुमोदन / पसंद को बिना कोई शुल्क/फीस लिए रद्द कर देगा |

 6. (संसद को निर्देश ) यदि कोई दूसरा/वैकल्पिक उम्मीदवार को अनुमोदन/स्वीकृति मिल जाती हैं जो इन में से कम है –

(6.1) वर्त्तमान सांसद के वोटों की गिनती से (सभी मतदाताओं के )10% अनुमोदन/स्वीकृति से अधिक है

                            या

(6.2) उस चुनाव-क्षेत्र के सभी मतदाताओं के 50% से ज्यादा अनुमोदन/स्वीकृति हों , और साथ ही में ,वर्त्तमान सांसद के प्राप्त वोटों से 1% अनुमोदन/स्वीकृति ज्यादा हों |

तो,वर्त्तमान सांसद अपना इस्तीफा 7 दिन में दे सकता है या उसे ऐसा करने की जरूरत नहीं है |

7. ( लोकसभा अध्यक्ष को निर्देश ) यदि वर्त्तमान सांसद 7 दिनों में इस्तीफा नहीं देता है, तो लोकसभा अध्यक्ष प्रस्ताव बुला सकता है संसद में , उस सांसद को निकालने के लिए या ऐसा करना उसके लिए नहीं जरूरी है | लोकसभा अध्यक्ष का फैसला आखरी/अंतिम होगा |

8.( सांसद को निर्देश ) दूसरे सांसद , उस सांसद को निकालने के लिए प्रस्ताव स्वीकृत कर सकते हैं या उन्हें ऐसा करने के लिए कोई जरूरत नहीं है |

9. (चुनाव आयोग(देश में चुनाव कराने वाली सरकारी संस्था ) को निर्देश ) यदि सांसद इस्तीफा देता है या निकाला जाता है, तो चुनाव आयोग नया चुनाव करवायेगी , कायदे के अनुसार | अगले चुनाव में , जो सांसद निकाला गया है, वो चुनाव लड़ सकता है |

10.  धारा-6 के प्रयोजन के लिए , मतदाताओं के अनुमोदन/स्वीकृति जिन्होनें चुनाव के अपना नाम दर्ज/रेजिस्टर किया है , वे नहीं गिने जाएँगे | हर चुनाव-क्षेत्र की मतदातों की सही संख्या चुनाव आयोग द्वारा दी/प्रकाशित की जायेगी और चुनाव-आयोग का फैसला आखरी होगा |

11. प्रधानमंत्री इस सरकारी आदेश के धारा-6 में दिए गए सीमाएं बदल सकता है | वो सीमा पूरे देश के लिए एक होगी |

12. चुनाव के समय, उम्मीदवार एक हलफनामा/एफिडेविट/शपथपत्र दे सकता है चुनाव-आयोग को बताते हुए कि वो `प्रजा अधीन-सांसद`/`राईट टू रिकाल-सांसद` सरकारी आदेश का समर्थन करता है कि नहीं |

13. ( जनता की आवाज़-1 (सी वी – 1) ) (जिला कलेक्टर)

यदि कोई गरीब, दलित, महिला, वरिष्‍ठ नागरिक या कोई भी नागरिक इस कानून में बदलाव/परिवर्तन चाहता हो तो वह जिला कलेक्‍टर के कार्यालय में जाकर एक ऐफिडेविट/शपथपत्र प्रस्‍तुत कर सकता है और जिला कलेक्टर या उसका क्‍लर्क इस ऐफिडेविट/हलफनामा को 20 रूपए प्रति पृष्‍ठ/पन्ने का शुल्‍क/फीस लेकर प्रधानमंत्री की वेबसाईट पर डाल देगा।

14. ( जनता की आवाज़-2 (सी वी – 2) ) (तलाटी (अथवा पटवारी/लेखपाल ) )

यदि कोई गरीब, दलित, महिला, वरिष्‍ठ नागरिक या कोई भी नागरिक इस कानून अथवा इसकी किसी धारा पर अपनी आपत्ति दर्ज कराना चाहता हो अथवा उपर के क्‍लॉज/खण्‍ड में प्रस्‍तुत किसी भी ऐफिडेविट/शपथपत्र पर हां/नहीं दर्ज कराना चाहता हो तो वह अपना मतदाता पहचानपत्र/वोटर आई डी लेकर तलाटी के कार्यालय में जाकर 3 रूपए का शुल्‍क/फीस जमा कराएगा। तलाटी हां/नहीं दर्ज कर लेगा और उसे इसकी पावती/रसीद देगा। इस हां/नहीं को प्रधानमंत्री की वेबसाईट पर डाल दिया जाएगा।

 

उदाहरण द्वारा समझाना / स्पष्टीकरण

 

(क) मान लीजिए एक चुनाव-क्षेत्र में 15 लाख मतदाता हैं | मान लीजिए 8,00,000 (8 लाख) ने वोट दिए | मान लीजिए जितने वाले उम्मीदवारों को 3,60,000 (3 लाख 60 हज़ार ) मिले |

अब यदि कोई वैकल्पिक/दूसरे उम्मीदवार को स्वीकृति/अनुमोदन मिलते हैं जो  (सभी मतदाताओं के 10% हैं ) यानी ( 15 लाख का 10% ) यानी 1.5 लाख जयादा हैं , वर्त्तमान सांसद को जितने वोट मिलें हैं , यानी 5,10,000 (5 लाख 10 हज़ार)  मिले, तो वो अगला सांसद बन सकता है |

(ख)  अनुमोदन/स्वीकृति को खरीदना संभव नहीं है – नागरिक किसि भी दिन अपना अनुमोदन/स्वीकृति रद्द कर सकते हैं | इसीलिए यदि कोई 5,10,000 वोटरों को 100 रु देता है, और अनुमोदन/स्वीकृति लेता है, तो नागरिक अगले दिन ही वे अनुमोदन/स्वीकृति रद्द कर सकते हैं | और ये अनुमोदन/स्वीकृति की खरीदने की कोशिश कोई दूसरे उम्मीदवार के लिए अनुमोदनों/स्वीकृति के देना , भी शुरू कर सकते हैं |

(ग) मतदाताओं को धमकी देना संभव नहीं है – कोई भी लाखों मतदातों को रोज-रोज धमकी नहीं दे सकता |

(घ) मान लीजिए एक चुनाव-क्षेत्र में 15 लाख मतदाता हैं | मान लीजिए 9,00,00 ( 9 लाख ) ने वोट किये | मान लीजिए जितने वाले उम्मीदवार को 8 लाख वोट मिले | अब यदि वैकल्पिक मतदाता को अनुमोदन/स्वीकृति मिले जो ( सभी मतदाताओं की संख्या के 50% हैं ) यानी  7,50,000 ( 7.5 लाख ) और वर्त्तमान सांसद के अभी अनुमोदन/स्वीकृति से 1 % ज्यादा हैं , तो नया उम्मीदवार अगला सांसद बन सकता है |

(च)  अनुमोदन / पसंद / स्वीकृति दर्ज करना बैंक के लेन-देन से ज्यादा सुरक्षित है :

व्यक्ति को ना सिर्फ अनुमोदन/स्वीकृति देने के लिए तलाटी के दफ्तर जाना है , उसको एस.एम.एस से इसकी जानकारी भी मिलती, क्रेडिट-कार्ड के इस्तेमाल के जैसे और मशीन उसका फोटो और अंगुली का छाप ले लेगी | ये जरूर है, कि पहले दिन से ये सभी सुविधाएं नहीं होंगी, लेकिन कोई भी कलेक्टर इन सबको 3-6 महीनों में लागू कर सकता है या फिर नागरिक उसको निकालने की मांग कर सकते हैं | फोटो, अंगुली की छाप और एस.एम.एस की जानकारी के साथ , ये सिस्टम बैंक के लेन-देन से ज्यादा सुरक्षित है | यदि इसको कोई हैक कर ( तोड़ ) सकता है, तो उसके लिए कोई बैंक हैक करना ( तोडना ) अधिक उपयोगी रहेगा |

(6.13) केन्द्रीय / राज्य सरकारी-आदेश ड्राफ्ट प्रजा अधीन-विधायक के लिए (भ्रष्ट विधायक को नागरिकों द्वारा बदलने का अधिकार )


1. (1.1)
शब्द `नागरिक` का मतलब रजिस्ट्रीकृत मतदाता है |

(1.2) शब्द “कर सकता है “ का मतलब कोई भी नैतिक-कानूनी बंधन नहीं है | इस का मतलब “ कर सकता है “ या “करने की आवश्यकता / जरूरत नहीं है “ है |

2. (जिला कलेक्टर को निर्देश/आर्डर ) प्रधानमंत्री जिला कलेक्टर को निर्देश देते हैं, कि यदि भारत का नागरिक जिला कलेक्टर के दफ्तर आता है और उम्मीदवार बनना चाहता है आने वाले विधायक के चुनाव में, तब जिला कलेक्टर , विधायक-चुनाव के जमा-राशि जितना शुल्क/फीस लेगा और उस व्यक्ति को `उम्मीदवार-आने वाले चुनाव में ` घोषित करेगा , विधायक के चुनाव के लिए | जिला कलेक्टर एक सीरियल नंबर/क्रम संख्या देगा और उसका नाम प्रधान मंत्री के वेबसाइट पर डालेगा |

3. ( तलाटी ,पटवारी या (उसके क्लर्क) को निर्देश )

(3.1) प्रधानमंत्री पटवारी (या तलाटी या गाँव का अधिकारी ) को निर्देश देगा कि नागरिक यदि खुद पटवारी के दफ्तर आता है, रु. 3 शुल्क/फीस देता है, और कम से कम पांच व्यक्तियों को अनुमोदन/स्वीकृति देता है विधायक के पद के लिए, तो पटवारी उसके स्वीकृति/पसंद/अनुमोदन कंप्यूटर में डालेगा और उसको एक रसीद देगा, जिसमें लिखा होगा ,उसकी वोटर आई.डी संख्या, तारीख/समय और जिन व्यक्तियों को उसने पसंद किया है  |

 

(3.2) यदि पटवारी के पास कंप्यूटर आदि नहीं है, तब जिला कलेक्टर इस कार्य को तहसीलदार के दफ्तर को देगा , जब तक कि पटवारी को कंप्यूटर, आदि नहीं मिलता इस कार्य को करने के लिए |

(3.3)  जिला कलेक्टर एक ऐसा सिस्टम बना सकता है जो एस.एम.एस जानकारी देगा नागरिक को `क्रेडिट कार्ड लेन-देन` के समान होगा |

(3.4) जिला कलेक्टर उपकरण/मशीन पटवारी को देगा, जो फोटो और अंगुली की छाप लेगा और रसीद देगा नागरिक के अंगुली की छाप और फोटो के साथ |

(3.5) प्रधानमंत्री का सचिव जरूरी सॉफ्टवेर(कंप्यूटर का अंदरूनी सामान) देगा पटवारी और जिला कलेक्टर, पटवारी को जरूरी मशीन देगा |

4.(तलाटी/पटवारी को निर्देश ) पटवारी नागरिकों के अनुमोदन/पसंद प्रधानमंत्री के वेबसाइट पर रखेगा , नागरिक के वोटर आई.डी. नंबर और उन व्यक्तियों के नाम , जिनको उसने अनुमोदन/पसंद किया है |

5. (तलाटी/पटवारी को निर्देश ) यदि वोटर अपने अनुमोदन रद्द करने आता है, तो तलाटी एक या अधिक अनुमोदन / पसंद को बिना कोई शुल्क/फीस लिए रद्द कर देगा |

6. (विधायक को निर्देश) यदि कोई दूसरा/वैकल्पिक उम्मीदवार को अनुमोदन/स्वीकृति मिल जाती हैं जो इन में से कम है –

(6.1) वर्त्तमान विधायक के वोटों की गिनती से (सभी मतदाताओं के ) 20% अनुमोदन/स्वीकृति से अधिक है

                            या

(6.2) उस चुनाव-क्षेत्र के सभी मतदाताओं के 50% से ज्यादा अनुमोदन/स्वीकृति हों , और साथ ही में ,वर्त्तमान विधायक के प्राप्त वोटों से 1% अनुमोदन/स्वीकृति ज्यादा हों |

तो,वर्त्तमान विधायक अपना इस्तीफा 7 दिन में दे सकता है या उसे ऐसा करने की जरूरत नहीं है |

7. ( विधानसभा अध्यक्ष को निर्देश ) यदि वर्त्तमान विधायक 7 दिनों में इस्तीफा नहीं देता है, तो लोकसभा अध्यक्ष प्रस्ताव बुला सकता है संसद में , उस विधायक को निकालने के लिए या ऐसा करना उसके लिए नहीं जरूरी है | विधानसभा अध्यक्ष का फैसला आखरी/अंतिम होगा |

8.( विधायक को निर्देश ) दूसरे विधायक , उस विधायक को निकालने के लिए प्रस्ताव स्वीकृत कर सकते हैं या उन्हें ऐसा करने के लिए कोई जरूरत नहीं है |

9. (चुनाव आयोग(देश में चुनाव कराने वाली सरकारी संस्था ) को निर्देश ) यदि विधायक इस्तीफा देता है या निकाला जाता है, तो चुनाव आयोग नया चुनाव करवायेगी , कायदे के अनुसार | अगले चुनाव में , जो विधायक निकाला गया है, वो चुनाव लड़ सकता है |

10.  धारा-6 के प्रयोजन के लिए , मतदाताओं के अनुमोदन/स्वीकृति जिन्होनें चुनाव के अपना नाम दर्ज/रेजिस्टर किया है , वे नहीं गिने जाएँगे | हर चुनाव-क्षेत्र की मतदातों की सही संख्या चुनाव आयोग द्वारा दी/प्रकाशित की जायेगी और चुनाव-आयोग का फैसला आखरी होगा |

11. ( जनता की आवाज़-1(सी वी – 1) ) (जिला कलेक्टर)

यदि कोई गरीब, दलित, महिला, वरिष्‍ठ नागरिक या कोई भी नागरिक इस कानून में बदलाव/परिवर्तन चाहता हो तो वह जिला कलेक्‍टर के कार्यालय में जाकर एक ऐफिडेविट/शपथपत्र प्रस्‍तुत कर सकता है और जिला कलेक्टर या उसका क्‍लर्क इस ऐफिडेविट/हलफनामा को 20 रूपए प्रति पृष्‍ठ/पन्ने का शुल्‍क/फीस लेकर प्रधानमंत्री की वेबसाईट पर डाल देगा।

12. ( जनता की आवाज़-2(सी वी – 2) ) (तलाटी (अथवा पटवारी/लेखपाल ) )

यदि कोई गरीब, दलित, महिला, वरिष्‍ठ नागरिक या कोई भी नागरिक इस कानून अथवा इसकी किसी धारा पर अपनी आपत्ति दर्ज कराना चाहता हो अथवा उपर के क्‍लॉज/खण्‍ड में प्रस्‍तुत किसी भी ऐफिडेविट/शपथपत्र पर हां/नहीं दर्ज कराना चाहता हो तो वह अपना मतदाता पहचानपत्र/वोटर आई डी लेकर तलाटी के कार्यालय में जाकर 3 रूपए का शुल्‍क/फीस जमा कराएगा। तलाटी हां/नहीं दर्ज कर लेगा और उसे इसकी पावती/रसीद देगा। इस हां/नहीं को प्रधानमंत्री की वेबसाईट पर डाल दिया जाएगा।

 

(6.14) राज्य सरकारी-आदेश ड्राफ्ट प्रजा अधीन-पार्षद के लिए (भ्रष्ट पार्षद को नागरिकों द्वारा बदलने का अधिकार)

 

1. (1.1) शब्द `नागरिक` का मतलब रजिस्ट्रीकृत मतदाता है |

(1.2) शब्द “कर सकता है “ का मतलब कोई भी नैतिक-कानूनी बंधन नहीं है | इस का मतलब “ कर सकता है “ या “करने की आवश्यकता / जरूरत नहीं है “ है |

2. (तहसीलदार ( मामलतदार ) को निर्देश/आर्डर ) मुख्यमंत्री तहसीलदार ( मामलतदार को निर्देश देते हैं, कि यदि भारत का नागरिक तहसीलदार के दफ्तर आता है और उम्मीदवार बनना चाहता है आने वाले पार्षद के चुनाव में, तब तहसीलदार, पार्षद-चुनाव के जमा-राशि जितना शुल्क/फीस लेगा और उस व्यक्ति को `उम्मीदवार-आने वाले चुनाव में ` घोषित करेगा , पार्षद के चुनाव के लिए | जिला कलेक्टर एक सीरियल नंबर/क्रम संख्या देगा और उसका नाम प्रधान मंत्री के वेबसाइट पर डालेगा |

3. ( तलाटी ,पटवारी या (उसके क्लर्क) को निर्देश )

मुख्यमंत्री पटवारी (या तलाटी या गाँव का अधिकारी ) को निर्देश देगा कि नागरिक यदि खुद पटवारी के दफ्तर आता है, रु. 3 शुल्क/फीस देता है, और कम से कम पांच व्यक्तियों को अनुमोदन/स्वीकृति देता है पार्षद के पद के लिए, तो पटवारी उसके स्वीकृति/पसंद/अनुमोदन कंप्यूटर में डालेगा और उसको एक रसीद देगा, जिसमें लिखा होगा ,उसकी वोटर आई.डी संख्या, तारीख/समय और जिन व्यक्तियों को उसने पसंद किया है  |

 

4.(तलाटी/पटवारी को निर्देश ) पटवारी नागरिकों के अनुमोदन/पसंद मुख्यमंत्री के वेबसाइट पर रखेगा , नागरिक के वोटर आई.डी. नंबर और उन व्यक्तियों के नाम , जिनको उसने अनुमोदन/पसंद किया है |

 5. (तलाटी/पटवारी को निर्देश ) यदि वोटर अपने अनुमोदन रद्द करने आता है, तो तलाटी एक या अधिक अनुमोदन / पसंद को बिना कोई शुल्क/फीस लिए रद्द कर देगा |

 6. (पार्षद को निर्देश ) यदि कोई दूसरा/वैकल्पिक उम्मीदवार को अनुमोदन/स्वीकृति मिल जाती हैं जो उस चुनाव-क्षेत्र के सभी मतदाताओं के 50% से ज्यादा अनुमोदन/स्वीकृति हों , और साथ ही में ,वर्त्तमान पार्षद के प्राप्त वोटों से 1% अनुमोदन/स्वीकृति ज्यादा हों तो,वर्त्तमान पार्षद अपना इस्तीफा 7 दिन में दे सकता है या उसे ऐसा करने की जरूरत नहीं है |

7. ( विधानसभा अध्यक्ष को निर्देश ) यदि वर्त्तमान पार्षद 7 दिनों में इस्तीफा नहीं देता है, तो लोकसभा अध्यक्ष प्रस्ताव बुला सकता है संसद में , उस पार्षद को निकालने के लिए या ऐसा करना उसके लिए नहीं जरूरी है | विधानसभा अध्यक्ष का फैसला आखरी/अंतिम होगा |

8.( पार्षद को निर्देश ) दूसरे पार्षद , उस पार्षद को निकालने के लिए प्रस्ताव स्वीकृत कर सकते हैं या उन्हें ऐसा करने के लिए कोई जरूरत नहीं है |

9. (राज्य चुनाव आयोग(देश में चुनाव कराने वाली सरकारी संस्था ) को निर्देश ) यदि पार्षद इस्तीफा देता है या निकाला जाता है, तो राज्य चुनाव आयोग नया चुनाव करवायेगी , कायदे के अनुसार | अगले चुनाव में , जो पार्षद निकाला गया है, वो चुनाव लड़ सकता है |

10.  धारा-6 के प्रयोजन के लिए , मतदाताओं के अनुमोदन/स्वीकृति जिन्होनें चुनाव के अपना नाम दर्ज/रेजिस्टर किया है , वे नहीं गिने जाएँगे | हर चुनाव-क्षेत्र की मतदातों की सही संख्या राज्य चुनाव आयोग द्वारा दी/प्रकाशित की जायेगी और राज्य चुनाव-आयोग का फैसला आखरी होगा |

11. ( जनता की आवाज़-1(सी वी – 1) ) (तहसीलदार)

यदि कोई गरीब, दलित, महिला, वरिष्‍ठ नागरिक या कोई भी नागरिक इस कानून में बदलाव/परिवर्तन चाहता हो तो वह तहसीलदार के कार्यालय में जाकर एक ऐफिडेविट/शपथपत्र प्रस्‍तुत कर सकता है और जिला कलेक्टर या उसका क्‍लर्क इस ऐफिडेविट/हलफनामा को 20 रूपए प्रति पृष्‍ठ/पन्ने का शुल्‍क/फीस लेकर मुख्यमंत्री की वेबसाईट पर डाल देगा।

12. ( जनता की आवाज़-2(सी वी – 2) ) (तलाटी (अथवा पटवारी/लेखपाल ) )

यदि कोई गरीब, दलित, महिला, वरिष्‍ठ नागरिक या कोई भी नागरिक इस कानून अथवा इसकी किसी धारा पर अपनी आपत्ति दर्ज कराना चाहता हो अथवा उपर के क्‍लॉज/खण्‍ड में प्रस्‍तुत किसी भी ऐफिडेविट/शपथपत्र पर हां/नहीं दर्ज कराना चाहता हो तो वह अपना मतदाता पहचानपत्र/वोटर आई डी लेकर तलाटी के कार्यालय में जाकर 3 रूपए का शुल्‍क/फीस जमा कराएगा। तलाटी हां/नहीं दर्ज कर लेगा और उसे इसकी पावती/रसीद देगा। इस हां/नहीं को मुख्यमंत्री की वेबसाईट पर डाल दिया जाएगा।

 

(6.15) राज्य सरकारी-आदेश ड्राफ्ट प्रजा अधीन-ग्राम सरपंच के लिए (भ्रष्ट ग्राम सरपंच को नागरिकों द्वारा बदलने का अधिकार )

 

1. (1.1) शब्द `नागरिक` का मतलब रजिस्ट्रीकृत मतदाता है |

(1.2) शब्द “कर सकता है “ का मतलब कोई भी नैतिक-कानूनी बंधन नहीं है | इस का मतलब “ कर सकता है “ या “करने की आवश्यकता / जरूरत नहीं है “ है |

2. (तहसीलदार ( मामलतदार ) को निर्देश/आर्डर ) मुख्यमंत्री तहसीलदार ( मामलतदार को निर्देश देते हैं, कि यदि भारत का नागरिक तहसीलदार के दफ्तर आता है और उम्मीदवार बनना चाहता है आने वाले ग्राम-सरपंच के चुनाव में, तब तहसीलदार, पार्षद-चुनाव के जमा-राशि जितना शुल्क/फीस लेगा और उस व्यक्ति को `उम्मीदवार-आने वाले चुनाव में ` घोषित करेगा , ग्राम-सरपंच के चुनाव के लिए | जिला कलेक्टर एक सीरियल नंबर/क्रम संख्या देगा और उसका नाम प्रधान मंत्री के वेबसाइट पर डालेगा |

3. ( तलाटी ,पटवारी या (उसके क्लर्क) को निर्देश )

मुख्यमंत्री पटवारी (या तलाटी या गाँव का अधिकारी ) को निर्देश देगा कि नागरिक यदि खुद पटवारी के दफ्तर आता है, रु. 3 शुल्क/फीस देता है, और कम से कम पांच व्यक्तियों को अनुमोदन/स्वीकृति देता है ग्राम-सरपंच के पद के लिए, तो पटवारी उसके स्वीकृति/पसंद/अनुमोदन कंप्यूटर में डालेगा और उसको एक रसीद देगा, जिसमें लिखा होगा ,उसकी वोटर आई.डी संख्या, तारीख/समय और जिन व्यक्तियों को उसने पसंद किया है  |

 

4.(तलाटी/पटवारी को निर्देश ) पटवारी नागरिकों के अनुमोदन/पसंद मुख्यमंत्री के वेबसाइट पर रखेगा , नागरिक के वोटर आई.डी. नंबर और उन व्यक्तियों के नाम , जिनको उसने अनुमोदन/पसंद किया है |

 5. (तलाटी/पटवारी को निर्देश ) यदि वोटर अपने अनुमोदन रद्द करने आता है, तो तलाटी एक या अधिक अनुमोदन / पसंद को बिना कोई शुल्क/फीस लिए रद्द कर देगा |

 6. (ग्राम-सरपंच को निर्देश ) यदि कोई दूसरा/वैकल्पिक उम्मीदवार को अनुमोदन/स्वीकृति मिल जाती हैं जो उस चुनाव-क्षेत्र के सभी मतदाताओं के 50% से ज्यादा अनुमोदन/स्वीकृति हों , और साथ ही में ,वर्त्तमान सरपंच के प्राप्त वोटों से 1% अनुमोदन/स्वीकृति ज्यादा हों तो,वर्त्तमान सरपंच अपना इस्तीफा 7 दिन में दे सकता है या उसे ऐसा करने की जरूरत नहीं है |

7. (राज्य चुनाव आयोग(देश में चुनाव कराने वाली सरकारी संस्था ) को निर्देश ) यदि पार्षद इस्तीफा देता है या निकाला जाता है, तो राज्य चुनाव आयोग नया चुनाव करवायेगी , कायदे के अनुसार | अगले चुनाव में , जो पार्षद निकाला गया है, वो चुनाव लड़ सकता है |

8. ( जनता की आवाज़-1(सी वी – 1) ) (तहसीलदार)

यदि कोई गरीब, दलित, महिला, वरिष्‍ठ नागरिक या कोई भी नागरिक इस कानून में बदलाव/परिवर्तन चाहता हो तो वह तहसीलदार के कार्यालय में जाकर एक ऐफिडेविट/शपथपत्र प्रस्‍तुत कर सकता है और जिला कलेक्टर या उसका क्‍लर्क इस ऐफिडेविट/हलफनामा को 20 रूपए प्रति पृष्‍ठ/पन्ने का शुल्‍क/फीस लेकर मुख्यमंत्री की वेबसाईट पर डाल देगा।

9. ( जनता की आवाज़-2(सी वी – 2) ) (तलाटी (अथवा पटवारी/लेखपाल ) )

यदि कोई गरीब, दलित, महिला, वरिष्‍ठ नागरिक या कोई भी नागरिक इस कानून अथवा इसकी किसी धारा पर अपनी आपत्ति दर्ज कराना चाहता हो अथवा उपर के क्‍लॉज/खण्‍ड में प्रस्‍तुत किसी भी ऐफिडेविट/शपथपत्र पर हां/नहीं दर्ज कराना चाहता हो तो वह अपना मतदाता पहचानपत्र/वोटर आई डी लेकर तलाटी के कार्यालय में जाकर 3 रूपए का शुल्‍क/फीस जमा कराएगा। तलाटी हां/नहीं दर्ज कर लेगा और उसे इसकी पावती/रसीद देगा। इस हां/नहीं को मुख्यमंत्री की वेबसाईट पर डाल दिया जाएगा।

 

(6.16) उन लोगों के लिए जो प्रधानमंत्री मुख्‍यमंत्री महापौर पर राइट टू रिकॉल / प्रजा अधीन राजा का विरोध करते हैं।

उनसे मैं अनुरोध करूंगा कि वे अपनी उन प्रक्रियाओं के प्रारूप हमें भेजें जिनके द्वारा नागरिकगण प्रधानमंत्री, मुख्‍यमंत्रियों को हटा सकते हैं, यदि वे समझते हैं कि उनके ड्रॉफ्ट मेरे क़ानून-ड्राफ्ट से बेहतर हैं । अगर उनके क़ानून-ड्राफ्ट बेहतर हुए तो मैं अपने क़ानून-ड्राफ्ट /प्रारूप को रद्द कर दूंगा। और उनके क़ानून-ड्राफ्ट को स्‍वीकार कर लूंगा। और यदि कोई यह मानता है कि हम आम लोगों के पास प्रधानमंत्री, मुख्‍यमंत्रियों को हटाने का कोई तरीका नहीं होना चाहिए तो मैं उनसे अनुरोध करूंगा कि जब मैं प्रधानमंत्री रिकॉल प्रक्रिया, मुख्‍यमंत्री रिकॉल प्रक्रिया, मेयर रिकॉल प्रक्रिया के एफिडेविट प्रस्‍तुत करूं तो जनता की आवाज(सूचना का अधिकार – 2) पर हस्‍ताक्षर होने के बाद वे उस पर हां दर्ज नहीं करें। अन्त में निर्णय नागरिकों के हां के द्वारा ही होगा, मेरे द्वारा नहीं।

 

(6.17) प्रजा अधीन राजा / राइट टू रिकॉल  (भ्रष्‍ट को बदलने का अधिकार) प्रारूप / क़ानून-ड्राफ्ट का प्रभाव

प्रधानमंत्री, मुख्‍यमंत्री, जजों / न्यायाधीशों आदि पर प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल (भ्रष्‍ट को बदलने का अधिकार) जनता को मुख्‍यमंत्रियों और प्रधानमंत्री के विरूद्ध बहुत शक्‍ति देता है। अभी तक हम लोगों को मुख्‍यमंत्री और प्रधानमंत्री वैसे मिले हैं जिनका व्‍यापक जनाधार रहा है लेकिन उनपर व्‍यापक दबाव नहीं रहा है। मुख्‍यमंत्रियों, प्रधानमंत्री को बदलने की यह प्रक्रिया मुख्‍यमंत्रियों, प्रधानमंत्री पर व्‍यापक दबाव पैदा करता है और आम नागरिकों के प्रति जवाबदारी पैदा करता है । अभी तक अधिकांश मुख्‍यमंत्रियों और प्रधानमंत्री को यह पता है कि वे पांच/5 साल के बाद ही हटाए जा सकते हैं । वे नागरिकों को ऐसा समझते हैं कि नागरिक हर हाल में उनका साथ देंगे ही। इस प्रक्रिया से उन्‍हें हटाया भी जा सकता है और नहीं भी, लेकिन हटाए जाने का खतरा यह सुनिश्‍चित/तय करेगा कि वे आज के मुख्‍यमंत्रियों, प्रधानमंत्री से ज्‍यादा अच्‍छा व्‍यवहार करेंगे क्योंकि ये प्रक्रिया आने से उनके सर पर लटकती तलवार जैसी होगी । 99 % पदाधिकारी ये प्रक्रिया नागरिकों को मिलने के बाद से अच्छा व्यवहार करेंगे और बाकी 1% को नागरिक बदल देंगे | इन प्रक्रियाओं को लागू करने के लिए नागरिकों को नागरिकों और `सेना के लिए खनिज रॉयल्‍टी`(एम आर सी एम) समूह के उम्‍मीदवारों को हम सांसद और विधायक को वोट करने की जरूरत नहीं है । वे वर्तमान प्रधानमंत्री और मुख्‍यमंत्रियों पर दबाव डाल सकते हैं कि वे पहली `प्रजा-अधीन राजा समूह` की मांग-`जनता की आवाज़-पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली ` सरकारी आदेश पर हस्ताक्षर कर भारतीय राजपत्र में डाल कर लागू करें और तब `जनता की आवाज़` सरकारी आदेश का उपयोग करके हम ये प्रक्रियाओं को लागू करने का इरादा हम रखते हैं।

      `नागरिकों और सेना के लिए खनिज रॉयल्‍टी (एम आर सी एम)` समूह के हमलोगों ने ऐसे ही तरीकों/प्रक्रियाओं का प्रस्‍ताव किया है जिसका प्रयोग करके नागरिक निम्‍नलिखित पदाधिकारियों को बदलने में सक्षम होंगे।

वे पद जिनपर प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल (भ्रष्‍ट को बदलने का अधिकार) समूह ने प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल (भ्रष्‍ट को बदलने का अधिकार) का प्रस्‍ताव किया है , इसकी मांग रखी है। 28 अप्रैल, 2010 की स्थिति के अनुसार (* का अर्थ है – नए पद)

1

प्रधानमंत्री

मुख्‍यमंत्री

महापौर

जिला सरपंच

तहसील सरपंच

ग्राम सरपंच

2

उच्‍चतम न्‍यायालय के मुख्‍य जज

मुख्‍य उच्च न्‍यायालय जज

जिला न्‍यायालय प्रमुख जज

3

उच्‍चतम न्‍यायालय के चार वरिष्‍ठ जज

उच्च न्‍यायालय के चार जज

चार वरिष्‍ठ जिला जज

4

भारतीय जूरी प्रशासक (*)

राज्‍य जूरी प्रशासक  (*)

जिला जूरी प्रशासक(*)

5

राष्‍ट्रीय भूमि किराया अधिकारी (*)

राज्‍य भूमि किराया अधिकारी (*)

6

सांसद

विधायक

पार्षद

जिला पंचायत सदस्‍य तहसील पंचायत सदस्‍य ग्राम पंचायत सदस्‍य

7

गवर्नर,भारतीय रिजर्व बैंक

राज्‍य मुख्‍य लेखाकार

जिला मुख्‍य लेखाकार

8

अध्‍यक्ष, भारतीय स्‍टेट बैंक

अध्‍यक्ष, राज्‍य सरकार बैंक

9

1)सालिसिटर जेनरल ऑफ इंडिया :  (भारत की सरकार की तरफ से अदालतों में स्वयं या सहायक द्वारा हाजिर होने वाला वकील ; सरकारी न्यायिक एजेंट) (महा न्यायाभिकर्ता);

 2) भारत का महान्‍यायवादी (भारत सरकार का मुख्य कानूनी सलाहकार)

1)सालिसिटर जेनरल ऑफ स्‍टेट/

2)राज्‍य महान्‍यायवादी

1)जिला मुख्‍य दण्‍डाधिकारी (जनता का फर्यादी)

2)जिला सीविल अधिवक्‍ता/वकील(न्यायालय आदि में नागरिकों के  पक्ष का समर्थन करनेवाला)

10

अध्‍यक्ष, भारतीय चिकित्‍सा परिषद् (इलाज सभा)

अध्‍यक्ष, राज्‍य चिकित्‍सा परिषद् (इलाज सभा)

11

गृह मंत्री, भारत

निदेशक, सी बी आई

गृह मंत्री, राज्‍य

निदेशक, सी आई डी

जिला पुलिस आयुक्‍त

12

वित्त मंत्री, भारत

वित्त मंत्री, राज्‍य

13

शिक्षामंत्री, भारत

राष्‍ट्रीय पाठ्यपुस्‍तक अधिकारी

शिक्षामंत्री, राज्‍य

राज्‍य पाठ्यपुस्‍तक अधिकारी

जिला शिक्षा अधिकारी

14

भारत स्‍वास्‍थ्‍य मंत्री

राज्‍य स्‍वास्‍थ्‍य मंत्री

जिला स्‍वास्‍थ्‍य अधिकारी

15

अध्‍यक्ष, यूजीसी (बड़े कालेज के लिए विशेष दान अरने वाली समिति)

विश्‍वविद्यालय कुलपति

प्रधानाचार्य, वार्ड स्कूल

16

कृषि मंत्री, भारत

कृषि राज्‍य मंत्री

17

भारतीय नागरिक (सीविल सपलाई ) आपूर्ति मंत्री

राज्‍य नागरिक (सीविल सप्पलाई) आपूर्ति मंत्री

जिला आपूर्ति अधिकारी

18

भारत के नियंत्रक एवं महालेखाकार (CAGI) (भारत-सरकार के हिसाब-किताब को रखने व जाँच करने वाले)

राज्‍य मुख्‍य लेखा-परीक्षक

जिला मुख्‍य लेखा-परीक्षक

19

1)नगर आयुक्‍त /कमिश्नर

2)मुख्‍य अधिकारी

20

राष्‍ट्रीय बिजली/उर्जा मंत्री

राज्‍य बिजली/उर्जा मंत्री

जिला बिजली-सपलाई(विद्युत –आपूर्ति) अधिकारी

21

1)अध्‍यक्ष, केन्‍द्रीय प्रत्‍यक्ष(सीधा/खुला) कर(टैक्स) बोर्ड

2)अध्‍यक्ष, केन्‍द्रीय अप्रत्‍यक्ष (छुपा हुआ) कर बोर्ड

राज्‍य टैक्स वसूली(कर संग्रहण) अधिकारी

जिला कराधान(टैक्स इकठ्ठा करने वाला ) अधिकारी

22

रेल मंत्री

राज्‍य परिवहन मंत्री

नगर परिवहन अधिकारी

23

दूरसंचार नियामक(टेलीफ़ोन प्रबंध करने वाला)

24

केन्‍द्रीय बिजली/विद्युत नियामक (टेलीफ़ोन प्रबंध करने वाला)

राज्‍य विद्युत नियामक

25

केन्‍द्रीय संचार मंत्री

राज्‍य संचार मंत्री (*)

जिला संचार केबल अधिकारी (*)

26

जिला जलापूर्ति अधिकारी (*)

27

केन्‍द्रीय चुनाव आयुक्‍त/कमिश्नर

राज्‍य चुनाव आयुक्‍त

28

राष्‍ट्रीय पेट्रोलियम मंत्री

राज्‍य पेट्रोलियम मंत्री

29

राष्‍ट्रीय कोयला मंत्री

राष्‍ट्रीय खनिज मंत्री

राज्‍य कोयला मंत्री

राज्‍य खनिज मंत्री

30

अध्‍यक्ष, भारतीय पुरातत्‍व सर्वेक्षण (पुरानी,इतिहास की चीजों/वस्तुओं की जांच)

अध्‍यक्ष, राज्‍य पुरातत्‍व सर्वेक्षण

31

अध्‍यक्ष, राष्‍ट्रीय इतिहास परिषद्(सभा)

अध्‍यक्ष, राज्‍य इतिहास परिषद्

32

अध्‍यक्ष, लोक सेवा आयोग (यू.पी.एस.सी) (भारत के नागरिक सेवा के नौकरी के लिए परीक्षा का प्रबंध करने के लिए जनसमूह/समिति)

अध्‍यक्ष, राज्‍य लोक सेवा आयोग

33

अध्‍यक्ष, केन्‍द्रीय  भर्ती बोर्ड

अध्‍यक्ष, राज्‍य  भर्ती बोर्ड

जिला भर्ती बोर्ड अध्‍यक्ष

34

अध्‍यक्ष, राष्‍ट्रीय महिला आयोग(सरकारी संस्था/कमीशन)  (महिला मतदातागण इन्‍हें बदल/हटा सकती हैं)

अध्‍यक्ष, राज्‍य महिला आयोग

अध्‍यक्ष, जिला महिला आयोग

35

अध्‍यक्ष, राष्‍ट्रीय दलित अत्याचार रोकथाम सरकारी संस्था (उत्‍पीड़न निवारण आयोग) (दलित मतदातागण इन्‍हें बदल/हटा सकते हैं)

अध्‍यक्ष, राज्‍य दलित उत्‍पीड़न निवारण आयोग

अध्‍यक्ष, जिला दलित उत्‍पीड़न निवारण आयोग

36

राष्‍ट्रीय पूर्त आयुक्‍त (जरूरतमंद लोगों के लिए सरकारी संस्था )

राज्‍य पूर्त आयुक्‍त

37

अध्‍यक्ष राष्‍ट्रीय बार/वकील समुदाय परिषद्(वकीलों की संचालन/प्रबंध करने वाली संस्था)

राज्‍य बार/वकील समुदाय परिषद् अध्‍यक्ष

जिला बार/वकील समुदाय परिषद् अध्‍यक्ष

38

राष्‍ट्रीय लोकपाल

राज्‍य लोक आयुक्‍त

जिला लोक आयुक्‍त

39

राष्‍ट्रीय सूचना कमिश्नर/आयुक्‍त

राज्‍य सूचना आयुक्‍त

जिला सूचना आयुक्‍त

40

——–

राज्‍य अपमिश्रण नियंत्रक अधिकारी

जिला अपमिश्रण नियंत्रक अधिकारी

41

संपादक, राष्‍ट्रीय समाचारपत्र

संपादक, राज्‍य समाचारपत्र

संपादक, जिला समाचारपत्र

42

संपादक, राष्‍ट्रीय महिला समाचारपत्र (महिला मतदाताओं द्वारा हटाया जा सकता है)

संपादक, राज्‍य महिला समाचारपत्र  (महिला मतदाताओं द्वारा हटाया जा सकता है)

संपादक, जिला महिला समाचारपत्र (महिला मतदाताओं द्वारा हटाया जा सकता है)

43

अध्‍यक्ष, दूरदर्शन

अध्‍यक्ष, राज्‍य दूरदर्शन

अध्‍यक्ष, जिला चैनल

44

अध्‍यक्ष, आकाशवाणी

अध्‍यक्ष, राज्‍य रेडियो चैनल

अध्‍यक्ष, जिला रेडियो चैनल

45

अध्‍यक्ष, राष्‍ट्रीय पहचान पत्र (आई डी) प्रणाली

अध्‍यक्ष, राज्‍य पहचान पत्र (आई डी) प्रणाली

46

अध्‍यक्ष, राष्‍ट्रीय जमीन-रिकॉर्ड सिस्टम (भूमि अभिलेख प्रणाली)

अध्‍यक्ष, राज्‍य भूमि अभिलेख प्रणाली

अध्‍यक्ष, जिला भूमि अभिलेख प्रणाली

47

अध्‍यक्ष, लोक सभा

अध्‍यक्ष, राज्‍य सभा

अध्‍यक्ष, विधान सभा

अध्‍यक्ष, विधान परिषद्

अध्‍यक्ष, जिला पंचायत

अध्‍यक्ष तहसील पंचायत

48

अध्‍यक्ष, तेल एवं प्राकृतिक गैस आयोग

अध्‍यक्ष, हिन्‍दुस्‍तान पेट्रोलियम कारपोरेशन लिमिटेड

अध्‍यक्ष, राज्‍य पेट्रोल निगम

यह सूची 7 मई, 2010 की तिथि के अनुसार है। यह सूची केवल बढ़ती ही है, घटती नहीं ।

 

(6.18) बदलने / हटाने की ये प्रक्रियाएं / तरीके भ्रष्‍टाचार को कैसे कम करती हैं ?

एक प्रश्‍न जिसका सामना मैं अकसर करता हूँ  – वर्तमान सभी अधिकारी भ्रष्‍ट हैं और इसलिए बदलकर लाए गए अधिकारी भी इतने ही भ्रष्‍ट होंगे। इसलिए बदलने/हटाने की कार्रवाई भ्रष्‍टाचार, भाई-भतीजावाद को कैसे कम करेगी? मैं इस प्रक्रिया को विस्‍तार से जिला शिक्षा अधिकारी के उदाहरण का प्रयोग करके बताउंगा।

सर्वप्रथम, मैंने बहुमत के मतदान द्वारा जेल में डालने और बहुमत के मतदान द्वारा फांसी पर चढ़ाने जैसे प्रारूपों/ड्राफ्टों का प्रस्‍ताव किया है । ये प्रारूप केवल उन मंत्रियों, भारतीय पुलिस सेवा (आई पी एस), भारतीय प्रशासनिक सेवा (आई ए एस), जजों पर लागू होंगे जिन्‍होंने इस प्रक्रिया का शत-प्रतिशत नैतिक और शत-प्रतिशत संवैधानिक होना स्‍वीकार किया है। इन प्रारूपों के सभी खण्‍ड/कलम शत-प्रतिशत सांवैधानिक और शत-प्रतिशत नैतिक हैं। इन प्रारूपों का उपयोग करके नागरिकगण उन भ्रष्‍ट मंत्रियों, भारतीय पुलिस सेवा (आई पी एस) अधिकारियों, भारतीय प्रशासनिक सेवा (आई ए एस) अधिकारियों, जजों/न्‍यायाधीशों को जेल भिजवा सकते हैं अथवा फांसी पर भी चढ़वा सकते है जिन्‍होंने इस प्रारूप को नैतिक घोषित किया है । और उन मंत्रियों, जजों आदि का क्‍या होगा जो यह समझते हैं कि बहुमत के मतों द्वारा फांसी शत-प्रतिशत संवैधानिक से कम है और/अथवा शत-प्रतिशत नैतिक से कम है। देखिए, प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल (भ्रष्‍ट को बदलने का अधिकार) नागरिकों को यह विकल्‍प देता है कि वे उन सभी भारतीय प्रशासनिक सेवा (आई ए एस) अधिकारियों, भारतीय पुलिस सेवा (आई पी एस) अधिकारियों, मंत्रियों, जजों को  हटा दें जो यह समझते है कि बहुमत के मत द्वारा फांसी अनैतिक है। इसलिए अब  प्रशासन में वैसे अधिकारीगण होंगे जिन्‍हें बहुमत के मत द्वारा फांसी दी जा सकती है। फांसी के खतरे को देखते हुए ये अधिकारी बहुत ज्‍यादा घूस लेने का साहस नहीं करेंगे। अब बहुमत के मतों द्वारा मृत्युदंड/फांसी देने की इस प्रक्रिया का केवल कहने/प्रचार मात्र का अर्थ/महत्व रह जाएगा क्योंकि प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल (भ्रष्‍ट को बदलने का अधिकार) ही भ्रष्टाचार पर नियंत्रण करने के लिए पर्याप्‍त होगा तथा नागरिकों को कभी भी बहुमत द्वारा मृत्युदंड सुनाने की आवश्यकता ही नहीं पड़ेगी । मैंने यह अगले पैराग्राफ/अनुछेद में विस्‍तार से बताया है कि किस तरह केवल प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल (भ्रष्‍ट को बदलने का अधिकार)  ही काफी है ।

किसी जिले में स्थित स्कूलों के प्रभारी जिला शिक्षा अधिकारी के पद पर विचार करें । मैंने राईट टू रिकॉल समूह के सदस्‍य के रूप में राईट टू रिकॉल – जिला शिक्षा अधिकारी का प्रस्ताव किया है – यह 10 कलम/खण्‍ड की प्रक्रिया होगी जिसके द्वारा जिले के माता-पिता/अभिभावक जिला शिक्षा अधिकारी को उसके पद से हटा सकते हैं । किस प्रकार प्रजा अधीन -जिला शिक्षा अधिकारी, जिला शिक्षा अधिकारी में सुधार लाएगा? पहले तो, सिर्फ निष्कासन/हटाए जाने का डर उसे भ्रष्टाचार कम करने के लिए बाध्य कर देगा । परन्तु ये ज्यादा काम नहीं करेगा। आख़िरकार हम एक ऐसा जिला शिक्षा अधिकारी चाहते हैं जिसकी भ्रष्टाचार में रूचि ही न हो न कि केवल ऐसा जिला शिक्षा अधिकारी जो केवल हटाये जाने के भय से भ्रष्टाचार कम करे । किस प्रकार प्रजा अधीन- जिला शिक्षा अधिकारी छह महीने के अंदर ही ऐसे सकड़ों जिला शिक्षा अधिकारी दे सकता है जो भ्रष्टाचार में बिलकुल ही रूचि नहीं रखते हों?  मैं विस्तार से वर्णन करूँगा कि किस प्रकार प्रजा अधीन -जिला शिक्षा अधिकारी कानून इस कार्य को पूरा करेगा ।

यहाँ भारत में लगभग 700 जिला शिक्षा अधिकारी हैं । सभी 700 बुद्धिमान ,क्षमतावान , तथा कार्यकुशल हैं । और उनमें से, मान लीजिए, 10-15 ऐसे होंगे जो भ्रष्टाचार में रूचि नहीं रखते/भ्रष्‍टाचार नहीं करते। इतनी संख्‍या में इमानदार लोगा तो पहले से ही हमारे समाज में हैं। अब मेरे राइट टू रिकॉल-जिला शिक्षा अधिकारी प्रक्रिया में एक और कलम/खण्‍ड है कि यदि कोई अधिकारी मुख्‍य मंत्री द्वारा जिला शिक्षा अधिकारी नियुक्‍त किया जाता है तो वह केवल एक ही जिले का जिला शिक्षा अधिकारी हो सकता है। लेकिन यदि नागरिकों ने उसे जिला शिक्षा अधिकारी बनाया है तो वह 10 जिलों का भी जिला शिक्षा अधिकारी बन सकता है और वह इन सभी जिलों का वेतन प्राप्‍त करेगा। अर्थात यदि कोई व्‍यक्‍ति 4 जिलों का जिला शिक्षा अधिकारी है और उसे नागरिकों ने नियुक्‍त किया है तो उसका वेतन 4 गुना होगा। यह ज्‍यादा सस्‍ता है क्‍योंकि वेतन ही चार गुना बढ़ेगा। चिकित्‍सा लाभ, अन्‍य लाभ और कई आजीवन लाभ 4 गुना नहीं बढ़ेंगे। बाद का एक संशोधन कुछ मूलभूत परिवर्तन “पदोन्नति “ तथा “विस्तार “ के इस प्रारूप को और अधिक बढ़ा देगा — वेतन (N*log2N) गुना हो जायेगा जहाँ N जिलों की संख्या है जो नागरिकों के समर्थन/अनुमोदन/स्वीकृति से उसे मिले हैं । इसके अलावा, एक ही व्यक्ति अलग अलग विभागों के कई पद प्राप्त कर सकता है । जैसे वो 10 जिलों के शिक्षा अधिकारी के साथ साथ स्वास्थ्य अधिकारी की भूमिका भी कुछ सीमाओं/प्रतिबंधों के साथ निभा सकता है। साथ ही साथ, उसके लिए सीधी तरक्की का अवसर भी उपलब्ध होगा । जैसे यदि कोई व्‍यक्‍ति कई  जिलों के अभियोजक/दण्‍डाधिकारी की तरह कार्य कर रहा है तो उसके एक या एक से अधिक राज्यों के अभियोजक बनने की संभावना बढ़ जायेगी ।

इसलिए वर्तमान 700 जिला शिक्षा अधिकारियों में से, मान लीजिए, 5-15 भ्रष्‍ट नहीं हैं । यदि एक बार प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल (भ्रष्‍ट को बदलने का अधिकार) लागू हो जाता है तो उन्हें सीधी तरक्की/पदोन्नति का अवसर मिल जायेगा। वे अपने जिले के स्कूलों में सकारात्मक परिवर्तन लेकर आएँगे । वे बीच के अधिकारियों को घूस लेने से रोकेंगे । इस बात का ध्यान रखेंगे कि ठेकेदार सही वस्तुएँ जैसे ब्लैकबोर्ड , कुर्सियां आदि स्कूलों में उपलब्ध करवाए। वे ध्यान रखेंगे कि शिक्षक स्कूल में उपस्थित रहें, आदि। और यदि वे ऐसा करेंगे तो वे मुख्‍यमंत्रियों को हफ्ता देना भी बन्‍द कर देंगे । अब मान लीजिए, इन सभी मामलों में मुख्‍यमंत्री लोग इन अधिकारियों का तबादला कर देते हैं । तब लगभग 7-15 ऐसे मामलों में से, कम से कम 2-3 मामलों में तो अभिभावक अपने बच्चों की अच्‍छी शिक्षा के लिए प्रजा अधीन -जिला शिक्षा अधिकारी कानून का उपयोग करके उस स्‍थानांतरित किए गए अधिकारी को वापस ले आएंगे।

इस तरह, इससे भारत के 700 जिलों में से 2-5 जिलों में शिक्षा की स्‍थिति में सुधार आएगा। तो शेष जिलों का क्‍या होगा? देखिए, मान लीजिए आप `क` जिले में रहते हैं। अब, मान लीजिए, `क` जिले का जिला शिक्षा अधिकारी भ्रष्‍ट और असक्षम है। मान लीजिए, पास में ही पांच अन्‍य जिले `ख`,`ग`,`घ`,`च`और `छ` हैं। मान लीजिए, केवल `छ` जिले में ही अच्‍छा जिला शिक्षा अधिकारी है। तो जिला `क` के नागरिकों के पास एक विकल्‍प होगा कि वे  अपने जिले के जिला शिक्षा अधिकारी को हटा सकते हैं और `छ` जिले के जिला शिक्षा अधिकारी को दोहरा कार्यभार दे सकते हैं । इसी विकल्‍प और शक्‍ति/अधिकार कि “अब नागरिकगण प्रजा अधीन – जिला शिक्षा अधिकारी का उपयोग करके मुझे हटा सकते हैं और मेरे पद पर `छ` जिले के जिला शिक्षा अधिकारी को ला सकते हैं”, `क“ख`,ग`,`घ`और `च` जिले के  जिला शिक्षा अधिकारी के मन में एक भय पैदा करेगा। इसलिए या तो वे 2-3 महीनों में ही सुधर जाएंगे या तो नागरिकगण उन्‍हें राइट टू रिकॉल- जिला शिक्षा अधिकारी का प्रयोग करके हटा देंगे। और 8-10 महीनों में ही सभी 700 जिला शिक्षा अधिकारी या तो सुधर जाएंगे या निष्‍काषित कर दिए जाएंगे। और अधिकारियों में “जल्‍दी अमीर बन जाओ” और “जनता भांड़ में जाए” की मानसिकता वाले अधिकारीगण प्रशासन से जाना शुरू कर देंगे और फिर प्रशासनिक पदों पर नहीं आना चाहेंगे। इसलिए वास्‍तव में सेवा करने की इच्‍छा वाले लोगों को सेवा का ज्‍यादा मौका मिलेगा और भ्रष्‍टाचारी लोगों को कम मौका मिलेगा गडबडी करने का |

वर्तमान सरकारी विधियों/प्रक्रियाओं में एक कमी यह है कि यदि कोई ईमानदार व्यक्ति दो लोगों का काम करता है तो भी उसे दो व्यक्ति के बराबर वेतन नहीं मिलेगा, जबकि व्यापार में ऐसा होना आम है । ये बातें ईमानदार लोगों को सरकारी नौकरी में आने से हतोत्साहित करती हैं। पर मेरे द्वारा प्रस्तावित प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल (भ्रष्‍ट को बदलने का अधिकार) विधि/प्रक्रिया, अधिकारीयों को एक से अधिक पद सम्‍हालने तथा उसके अनुरूप बढ़ा वेतन देने का प्रावधान करती है । इससे शासन/सरकार में ईमानदार तथा योग्य/उद्यमी लोगों की भागीदारी बढ़ेगी।

      मैंने प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल (भ्रष्‍ट को बदलने का अधिकार)  का प्रस्ताव केवल जिला शिक्षा अधिकारी के लिए ही नहीं, बल्कि जिला स्वास्थ्य अधिकारी, जिला पुलिस प्रमुख, जिला आपूर्ति अधिकारी (राशन का प्रभारी अधिकारी)  इत्यादि के लिए भी किया है । मैंने प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल (भ्रष्‍ट को बदलने का अधिकार)  का प्रस्ताव जिला स्तर के करीब 30-50 पदों, जिनमें जिला न्‍यायाधीश भी शामिल हैं, के लिए किया है । इस प्रकार, सभी 700 जिलों के लगभग 30,000 अधिकारियों तथा जजों/न्‍यायाधीशों के लिए प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल (भ्रष्‍ट को बदलने का अधिकार) का प्रयोग किया जायेगा। जिस दिन प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल (भ्रष्‍ट को बदलने का अधिकार) कानून लागू होगा, उसी दिन 24 घंटों के भीतर करीब 15,000 अधिकारी सुधर जायेंगे। और जब पहले ही महीने में किसी जिले में मात्र 2-5 अधिकारी भी हटा दिए जायेंगे तो बचे हुए 15,000 अधिकारी भी अपने आप ही सुधर जायेंगे। दूसरे शब्‍दों में, प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल (भ्रष्‍ट को बदलने का अधिकार)  का प्रयोग करके नागरिकों को 30,000 अधिकारीयों में से 50 अधिकारियों को भी हटाने की जरुरत नहीं पड़ेगी । 2-3 अधिकारियों का निष्कासन/हटाया जाना ही शेष/बाकी बचे अधिकारियों को पर्याप्‍त चेतावनी दे देगा। इस प्रकार, प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल (भ्रष्‍ट को बदलने का अधिकार) कोई अस्थिरता पैदा बिलकुल ही नहीं करेगा ।

इसीप्रकार, मैंने राज्य सरकार/प्रशासन स्तर के पदों तथा केन्द्र सरकार/प्रशासन के पदों जैसे प्रधानमंत्री, मुख्‍यमंत्री, उच्‍च न्‍यायालय के न्‍यायाधीश/हाईकोर्ट जज, उच्‍चतम न्यायालय के न्‍यायाधीश/सुप्रीम कोर्ट जज इत्यादि के लिए भी प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल (भ्रष्‍ट को बदलने का अधिकार) प्रस्तावित किया है। कुछ मामलों में वे पद पर बने रह सकते हैं जबकि कुछ मामलों में उन्हें हटा दिया जाएगा और उनके स्‍तर के या उनसे कम स्‍तर के बेहतर लोगों को उनके स्‍थान पर अवसर दिया जायेगा (जनता द्वारा) ।

 

(6.19) प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल तथा व्‍यावहारिक ज्ञान / कॉमन सेन्स

बहुत से लोग मुझ पर अमेरिका का समर्थक होने का आरोप लगाते हैं तथा अमेरिकी प्रणाली का आंख मुंदकर नकल करने का भी आरोप लगाते हैं । देखिए,  पहली बात, मैं अमेरिका का समर्थक बिल्कुल भी नहीं हूँ – मैं अमेरिका का बहुत बड़ा विरोधी हूँ । और मेरा विश्वास है कि अमेरिका भारत का सबसे बड़ा दुश्मन है । अमेरिकी कुलीन वर्ग के लोग/धनवान लोग न केवल भारत के सभी खनिजों पर कब्ज़ा करना चाहते हैं बल्कि बल प्रयोग करके और यदि आवश्‍यकता पड़े तो 10 प्रतिशत जनसंहार/जातिसंहार करके भी यहां ईसाई धर्म थोपना चाहते हैं। इसलिए, मैं अमेरिकी समर्थक बिलकुल नहीं हूँ । पर, मेरे विचार से, हमें यह समझना होगा कि आखिर वह क्‍या कारक/कारण है जिससे अमेरिका को इतनी ताकत मिली। प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल (भ्रष्‍ट को बदलने का अधिकार) इसका प्रमुख कारण है । प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल (भ्रष्‍ट को बदलने का अधिकार) ने ही अमेरिका को कम भ्रष्टाचार वाला प्रशासन दिया है जिसने अमेरिका को एक इतनी शक्तिशाली सेना वाला, एक इतना शक्तिशाली राष्ट्र बना दिया कि यह न केवल दूसरे देशों के तेल के कुओं पर कब्ज़ा कर सकता है बल्कि उन्हें ईसाई धर्म अपनाने के लिए बाध्य/मजबूर भी कर सकता है। उदाहरण: इराक। इसलिए मैं जब अमेरिका के प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल (भ्रष्‍ट को बदलने का अधिकार) की बात करता हूँ तो मेरा इरादा केवल अमेरिका का उदाहरण देना भर होता है । मैं अमेरिका का समर्थक बिल्कुल नहीं हूँ ।

      प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल (भ्रष्‍ट को बदलने का अधिकार) अमेरिका की  देन नहीं है। प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल (भ्रष्‍ट को बदलने का अधिकार) केवल एक सहज ज्ञान/कॉमन सेन्स है। मान लीजिए, आपके घर में कई नौकर हैं जैसे – रसोइया या बर्तन धोने वाला या  झाड़ू पोछा करने वाला या बुजुर्गों की देखभाल करने वाला आदि।  क्या आपके पास उन्हें हटाने का अधिकार है?(अवश्‍य है)। मान लीजिए, सरकार कोई ऐसा नियम/कानून बनाए कि आप नौकर कोई भी चुन सकते हैं परन्तु बिना कोर्ट के आदेश के उसे हटा नहीं सकते हैं। और अगले पांच वर्ष तक आपके अकाउंट/खाते से पैसे निकालकर उसके अकाउंट में डाले जाएँगे। और केवल वह ही आपके घर पर काम कर सकता है, उसके अलावा और कोई भो नौकर आपके घर में 5 साल/वर्ष तक काम करने नहीं आ सकता। तब उस नौकर के मामले में आपकी क्या स्थिति होगी? वह नौकर आपका मालिक बन जायेगा और आप उसके नौकर बन जाएंगे। नागरिकों की स्थिति भी ठीक ऐसी ही है। स्‍थानीय कार्यालयों/दफ्तरों में उच्चतम न्‍यायालय के मुख्‍य न्‍यायाधीश से लेकर चपरासी तक हर सरकारी कर्मचारी “जनता का सेवक” है ।  पर चूँकि जनता के पास उन्हें हटाने की प्रक्रिया/अधिकार नहीं है इसलिए वे “जनता के मालिक” बन बैठे हैं । जिस तरह शेयरधारकों के पास सी.ई.ओ, निदेशक, वरिष्ठ प्रबंधक आदि को हटाने का अधिकार है — उसी प्रकार प्रधानमंत्री , मुख्‍यमंत्री ,उच्चतम न्‍यायालय के जजों , उच्च न्‍यायालय के जजों आदि के विरूद्ध प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल लाने में भी सहज बुद्धि/कॉमन सेन्स का उपयोग किया गया है।  कभी-कभी मैं खुद को मूर्ख समझता हूँ कि मैं प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल (भ्रष्‍ट को बदलने का अधिकार) के बारे में तब समझ सका जब मैंने अमेरिका तथा भारत के शासन के बारे में गहराई से अध्ययन किया तथा  प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल जैसे कुछ ऐसे आसान तथ्य प्राप्त किए जिनके बारे में तो मैं पहले दिन ही सोच सकता था। और जब भी मैं पीछे पलट कर देखता हूँ तो यही पाता हूँ कि “ सचमुच मैं कितना मूर्ख था जो इसके बारे में पहले नहीं सोचा” ।

 

(6.20) प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल और अथर्ववेद , सत्यार्थ प्रकाश

प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल (भ्रष्‍ट को बदलने का अधिकार)के बारे में अथर्ववेद में उल्लेख मिलता है । अथर्ववेद में कहा गया है कि सभा अर्थात सभी नागरिकों की सभा राजा को हटा सकती है । महर्षि दयानंद सरस्वती ने सत्यार्थ प्रकाश के छठे अध्याय में राजधर्म के बारे में बताया है तथा प्रथम 5 श्लोकों में महर्षि कहते हैं कि राजा “प्रजा-अधीन” होना ही चाहिए अर्थात आम जनता पर निर्भर। और अगले ही श्लोक में महर्षि कहते हैं कि यदि राजा प्रजा अधीन नहीं होता है तो ऐसा राजा राष्ट्र में घुस कर जनता को लूटता है तथा जिस प्रकार मांसाहारी पशु दूसरे पशुओं को खा जाता है उसी प्रकार वह राजा जो प्रजा अधीन नहीं होता, वह राष्ट्र को खाकर नष्‍ट कर देगा।  महर्षि ने ये दोनों ही श्लोक अथर्ववेद से लिए हैं। तथा ध्यान दें- यहाँ राजा शब्द में सभी राज-कर्मचारियों शामिल हैं अर्थात उच्चतम न्यायालय के मुख्‍य न्‍यायाधीश से लेकर पटवारी तक सरकार के सभी कर्मचारी। सरकार के सभी कर्मचारियों को प्रजा आधीन होना चाहिए वरना वे जनता/नागरिकों को लूट लेंगे – ऐसा उन संतों ने लिखा है जिन्होंने वेद लिखा है, और दयानंद सरस्वती ने भी उन संतों का समर्थन किया है तथा मैं भी उन संतों से सहमत हूँ। कैसे हम आम जनता, राजा तथा राजकर्मचारियों को “प्रजा-अधीन” बना सकते हैं? देखिए, प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल – प्रधानमंत्री, प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल – उच्चतम न्यायालय के मुख्‍य न्‍यायाधीश तथा प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल – मुख्‍यमंत्री आदि कुछ रास्ते मैंने बताए हैं। और ध्‍यान दीजिए – दयानन्‍द सरस्‍वती जी संविधान के अधीन राजा के बारे में नहीं कहते, वे प्रजाधीन राजा के बारे में कहते हैं। इसलिए अथर्ववेद तथा दयानंद सरस्वती जी के शब्‍दों में, इस बात का कि ”अमेरिका की पुलिस भारत की पुलिस से कम भ्रष्ट क्यों है?” जवाब यह है कि अमेरिका में पुलिस प्रमुख प्रजा अधीन होता है जबकि भारत में कोई भी अधिकारी प्रजा अधीन बिलकुल नहीं है। अथर्ववेद तथा महर्षि दयानंद यह भी कहते हैं कि जो राजा (या राज कर्मचारी जैसे पुलिस प्रमुख) प्रजा अधीन नहीं है वो जनता को लूट लेगा। और हमने ये हर बार देखा है । अमेरिका में न केवल पुलिस आयुक्त बल्कि गवर्नर , सांसद , जिला जज, जिला शिक्षा अधिकारी , जिला अभियोजक तथा कुछ राज्यों में तो हाईकोर्ट जज भी प्रजा आधीन होते हैं । और इसलिए राजकर्मचारियों द्वारा लूट नाममात्र की है ।

            और कृपया ध्यान दीजिए –  दयानंद सरस्‍वती जी संविधान-अधीन राजा के बारे में नहीं कहते। वे प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल (भ्रष्‍ट को बदलने का अधिकार) के बारे में कहते हैं। भारत में, 4 अंकों के स्‍तर के बुद्धिजीवियों ने हमेशा उस बात का विरोध किया जो अथर्ववेद और सत्यार्थ प्रकाश सुझाते हैं I 4 अंकों वाले स्तर के ये बुद्धिजीवी कहते हैं कि राजा और राज कर्मचारी अर्थात सरकारी कर्मचारियों को प्रजा के अधीन कदापि नहीं होना चाहिए बल्‍कि उन्हें केवल संविधान के अधीन होना चाहिए। संविधान-अधीन राजा अर्थात संविधान-अधीन मंत्री, संविधान-अधीन अधिकारी, संविधान-अधीन पुलिसवाले और संविधान-अधीन न्‍यायाधीश की पूरी संकल्‍पना ही एक छल है क्‍योंकि तथाकथित संविधान की व्‍याख्‍या को न्‍यायाधीशों, मंत्रियों आदि  द्वारा एक मोम के टुकड़े की तरह तोड़ा-मरोड़ा जा सकता है |

 

(6.21) पश्चिम के पास प्रजा अधीन राजा / राइट टू रिकॉल–प्रधानमंत्री , प्रजा अधीन राजा / राइट टू रिकॉल–सुप्रीम कोर्ट जज नहीं है , तो हमें इसकी क्या आवश्यकता है?

मैं प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल (भ्रष्‍ट को बदलने का अधिकार) की प्रक्रिया/तरीके का प्रचार करता रहा हूँ जिसके द्वारा हम आम जनता प्रधानमंत्री, मुख्‍यमंत्रियों तथा जजों को उनके पद से हटा सकते हैं। सभी बुद्धिजीवियों ने इस बात का विरोध किया तथा इस नियम को संविधान विरुद्ध बताने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा दिया। फिर, इसमें बुरी तरह असफल रहने पर उन्होंने यह कहना शुरू कर दिया कि “ पश्चिम में इस तरह की कोई विधि/प्रक्रिया नहीं है तो भारत में इस तरह की किसी विधि/प्रक्रिया की क्या जरुरत है ?”

      देखिए, अमेरिका के नागरिकों के पास वह विधि/प्रक्रिया है जिसके द्वारा वे जिला स्तर के प्राधिकारियों/पदाधिकारियों को उनके पद से हटा सकते हैं। तथा अमेरिका के 20 राज्यों में नागरिकों के पास गवर्नर को भी पद से हटाने का अधिकार है तथा बाकी बचे हुए 30 राज्यों के गवर्नर ये जानते हैं कि यदि उन्होंने बुरा बर्ताव किया तो नागरिक इस तरह की किसी विधि का निर्माण करके उन्हें भी पद से हटा सकने में सक्षम/समर्थ हैं और फिर वे उसका प्रयोग करके उन्‍हें हटा देंगे।  इसलिए जहाँ 20 राज्यों के गवर्नर जनता द्वारा निष्कासित होने/हटाए जाने के  प्रत्‍यक्ष/प्रकट खतरे का सामना करते हैं वहीँ 30 राज्यों के गवर्नर भी परोक्ष/अप्रकट रूप से इस खतरे का सामना करते हैं।

      फिर भी एक प्रश्‍न बना रह जाता है – अमेरका के नागरिकों के पास राष्‍ट्रीय स्‍तर पर राष्‍ट्रपति और सीनेटरों को हटाने की प्रक्रिया नहीं है। तो भी वर्ष 1929 में जब करोड़ों अमेरिकावासियों की नौकरियां छूट गईं तो सीनेटर, राष्‍ट्रपति और अभिजात्‍य/कुलीन वर्ग ने 70 प्रतिशत आयकर, 70 प्रतिशत विरासत-कर जैसे अनेक कानून लागू कर दिए और इन कानूनों का उपयोग कल्‍याणकारी और रोजगार संबंधी योजनाओं को लागू करने के लिए आवश्‍यक फंड/धन जुटाने में किया। लेकिन कैसे ? कैसे अमेरिकी संघीय सरकार आमलोगों के हितों के लिए ऐसी कार्रवाई कर पाई? क्‍योंकि वर्ष 1929 में, 70 प्रतिशत से अधिक अमेरिकी जनता के पास बंदूकें थीं। अमेरिका और यूरोप में कल्‍याणकारी राज्‍य/वेलफेयर स्‍टेट 1930 के दशक में “सशस्‍त्र शांतिपूर्ण क्रांति” के जरिए आए। यह विरोधाभासी लग सकता है लेकिन ऐसा नहीं है। रूस में केवल 10 से 15 प्रतिशत जनसंख्‍या के पास हथियार थे। और इसलिए जार/शाह उन्‍हें दबाने की सोच सकते थे। उसने( जार ने) कोशिश की और इसलिए वहां सशस्‍त्र क्रान्ति हुई। लेकिन अमेरिका और इंग्लैण्‍ड में 70 प्रतिशत से ज्‍यादा वयस्‍कों के पास हथियार थे और कुलीन/अभिजात वर्ग के लोग यह जान गए कि जनता को तब भी दबाया नहीं जा सकता जब सभी पुलिसवालों और सिपाहियों को तैनात कर दिया जाए। और इसके अलावा उनके सामने 1917 की रूसी क्रान्‍ति का उदाहरण मौजूद था जिसकी यादें अभी भी उनके मन में ताजा थीं। इसलिए वर्ष 1932-36 में अमेरिकी कुलीन/अभिजात वर्ग के लोगों ने कल्‍याणकारी और रोजगार की योजनाओं को लागू करने के लिए मरनोपरांत `विरासत कर` के रूप में अपनी सम्‍पत्ति का 40 से 70 प्रतिशत तक और अपनी आय का भी 40 से 70 प्रतिशत आयकर के रूप में देने पर सहमत हो गए। ऐसा किसी भलाई के उद्देश्‍य से नहीं किया गया था बल्‍कि हथियार-बन्‍द नागरिक समुदाय से अपनी बची 30 प्रतिशत आय और 30 प्रतिशत सम्पत्‍ति बचाने के तरीके के रूप में किया गया था। दूसरे शब्‍दों में, यह कल्‍याणकारी राज्‍य, सशस्‍त्र शांतिपूर्ण क्रान्‍ति का ही परिणाम था।

            नेता, प्रमुख बुद्धिजीवी तथा विशिष्टवर्ग/अभिजात वर्ग के लोग केवल दो ही बातों की चिंता करते है : बन्दूक तथा वापस बुलाने/हटाने के अधिकार का डर, और किसी बात की नहीं। उन्हें अपना सम्मान ,चरित्र आदि के पतन/धूमिल हो जाने का डर नहीं है, अंतरात्मा जैसी किसी बात की तो वे परवाह ही नहीं करते। उन्हें गरीबी से मर रही हम आम जनता की कोई फिक्र नहीं है। उदहारण के लिए, 1940 में, जब 40 लाख जनता भूख से मर गई , उस समय तथाकथित प्रमुख बुद्धिजीवी तथा विशिष्टवर्ग/कुलीन वर्ग के लोग उसी तरह खा पी, मौज मस्‍ती कर रहे थे तथा उन्होंने जनता की जरा भी परवाह नहीं की। इसी तरह, आज (1991-2008) भी, आप देखिये, नेता, बुद्धिजीवी, तथा विशिष्टजन/अभिजात वर्ग और अधिक संख्‍या में आई आई टी, आई आई एम , जे एन यू, यू जी सी, पूलों, हवाई मार्ग, बेहतर हवाई अड्डे , बेहतर बंदरगाह और सेज  आदि की माँग कर रहे हैं। जब आप हर वर्ष 1000 रूपए की दवाईयों/भोजन के अभाव में हर वर्ष लाखों शिशुओं /बच्‍चों के दम तोड़ देने की बात करते हैं, तब भारत के ये नेता,  बुद्धिजीवी तथा विशिष्टजन उदारीकरण, निजीकरण, वैश्वीकरण, उदयमान भारत (राइजिंग इंडिया), शाइनिंग इंडिया, फील गुड फैक्टर, अतुल्य भारत (इनक्रेडेबल इंडिया), 8 प्रतिशत विकास दर के समूह गान का राग एक सुर में राग अलाप रहे हैं। जहां रोम के पास एक नीरो था, भारत के 98 प्रतिशत से ज्‍यादा नेता, बुद्धिजीवी, अभिजात वर्ग के लोग नीरो हैं। अमेरिका के विशिष्टजन/ उच्‍चवर्ग ने ऐसी नीरोगिरी नहीं दिखाई क्योंकि वहाँ की 70 प्रतिशत जनता के पास बंदूकें थीं। भारत के नेता, बुद्धिजीवी और विशिष्टजन ऐसी नीरोगिरी दिखाते हैं क्योंकि मध्‍यम/निम्न वर्ग की 95 प्रतिशत आम-जनता में से 2 प्रतिशत जनता के पास भी हथियार नहीं हैं।  इसलिए “ उन्हें भूखों मरने दो तथा हमें फलने फूलने दो”  यही  प्रमुख भारतीय उच्‍चवर्ग/ अभिजात वर्ग, भारतीय नेता और भारतीय बुद्धिजीवी की सोच है ।

      अमेरिकियों के पास केवल जिला/राज्‍य स्तर के अधिकारियों को ही वापस बुलाने/हटाने का अधिकार है राष्ट्रीय स्तर पर नहीं। लेकिन अमेरिका के आम नागरिकजन का सशस्त्र होने ने रिकाल (वापस बुलाने के अधिकार) का काम किया राष्ट्रिय स्तर पर | भारत में हम जनता के पास हथियार नहीं है । नक्सलियों की तरह के कुछ लोग हैं  जो ये समझते हैं कि गरीबी से छुटकारा पाने का एकमात्र उपाय हथियार ही है। मैं हम आम जनता के पास शस्त्रों/हथियार होने का समर्थन करता हूँ, लेकिन गरीबी की समस्या के समाधान के लिए प्रजा अधीन राजा/राईट टू रिकॉल के प्रयोग पर ही जोर देता हूँ तथा समाधान के तौर पर प्राथमिकता से/सबसे पहले  शास्त्रों/हथियारों के प्रयोग को सही नहीं मानता।  आम जनता भूख से मर सकती है जैसे कि 1940 के दशक में बंगाल में मौतें हुई थीं या फिर वह हथियार उठा सकती है जैसा कि 1916 में रूस में हुआ था या फिर हथियार उठाने कि धमकी यहाँ भी कल्‍याणकारी राज्‍य/अच्छाई का माहौल बना सकती है जैसा कि 1932 में अमेरिका में बना था। पर ये वो रास्ते/तरीके हैं जिनका सुझाव मैं अभी की परिस्‍थिति में नहीं दूँगा। मैं नेताओं, बुद्धिजीवियों तथा विशिष्ट जनों के खिलाफ हथियारों के उपयोग की बजाए प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल (भ्रष्‍ट को बदलने का अधिकार) के प्रयोग की कोशिश करना चाहता हूँ।

      इसलिए इस प्रश्‍न कि: यह कैसे हुआ कि 1932-39 में पश्चिम देशों में राष्ट्रीय स्तर पर प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल की प्रक्रिया/विधि न होने के बावजूद जनता की दशा में सुधार हुआ?” का पुनः जवाब दे रहा हूँ। जवाब है: क्योंकि 70 प्रतिशत अमेरिकियों के पास बंदूकें थीं।

      अभी, निचली 98 प्रतिशत भारतीय जनता के पास बंदूकें नहीं हैं। मैं स्‍वीटजरलैण्‍ड की ही तरह का एक ऐसा भारत चाहता हूँ, जहाँ 100 प्रतिशत नागरिकों के पास बंदूकें हैं, लेकिन यह पर सिर्फ बाहरी ताकतों जैसे पाकिस्तान, चीन, अमेरिका,  इंग्लैण्‍ड आदि के आक्रमण से भारत की रक्षा के लिए न कि गरीबी तथा भ्रष्टाचार की समस्‍याओं के समाधन के लिए। गरीबी तथा भ्रष्टाचार की समस्या के लिए मैं प्रधानमंत्री, मुख्‍यमंत्री, जजों/न्‍यायाधीशों आदि के खिलाफ प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल (भ्रष्‍ट को बदलने का अधिकार) कानून को प्रमुखता दूँगा।

सारांश :

            पश्‍चिमी देशों को राष्‍ट्रीय स्‍तर पर प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल की जरूरत महसूस नहीं हुई क्योंकि वहां हथियारबन्‍द नागरिक समाज था। हमारे यहां आज की स्‍थिति के अनुसार हथियारबन्‍द नागरिक समाज नहीं है और इसलिए हमें राष्‍ट्रीय, राज्‍य और जिला स्‍तरों पर प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल प्रक्रिया/विधि की लानी ही होगी।

 

(6.22) प्रजा अधीन राजा / राइट टू रिकॉल के विरूद्ध दिए जाने वाले तर्कों का जवाब

पश्चिमी देशों में सुधार आया क्योंकि वहाँ निष्कासन विधि/प्रक्रिया (ज्यूरी तथा रिकॉल विधि) तथा जनता को भरपूर हथियार देकर ताकतवर बनाया गया था। पश्चिमी नागरिकों के विकास के केवल ये ही दो प्रमुख कारण थे। तथा भारत के बुद्धिजीवियों ने इन दोनों ही बातों का विरोध किया है। अर्थात उन्होंने भारत में जनता के सशस्त्र होने का विरोध किया। साथ ही साथ रिकॉल ज्यूरी का भी विरोध किया। दूसरे शब्‍दों में,  भारत के बुद्धिजीवियों ने यह सुनिश्चित किया है कि भारत की जनता कमजोर, विनम्र तथा गरीब बनी रहे तथा इसके बाद वे इनकी दुर्दशा का आरोप ‘राजनैतिक सभ्यता’ की झूठी कहानी पर मढ़ते रहें।

            अब मैं पाठकों से अनुरोध करता हूँ कि वे ध्यान दें कि किस प्रकार ये भारतीय “बुद्धिजीवी” छात्रों को झूठों का पुलिन्‍दा थमाते हैं या फिर आधा-अधूरा सच बताते हैं |

(1) भारत के बुद्धिजीवी छात्रों को इस बारे में कोई जानकारी नहीं देते कि यूरोप में कोरोनर की ज्यूरी सिस्टम आने के बाद से ही वहाँ की पुलिस में सुधार हु , जिसमें आम नागरिकों क्रूर अधिकारियों को उनके पदों से हटा सकते हैं।  केवल इसी ज्यूरी सिस्टम के आने के बाद ही पुलिसकर्मियों की क्रूरता/उत्‍पीड़न तथा जनता को लूटने की घटनाओं में कमी आई तथा अमेरिका में समृद्धि आना शुरू हुआ।

(2) भारत के बुद्धिजीवियों ने छात्रों को इस तथ्य के बारे में कोई जानकारी नहीं दी कि ज्यूरी और रिकॉल के तरीके का अधिक से अधिक प्रयोग किया जाना ही अमेरिकी जिला तथा राज्य प्रशासन में कम भ्रष्टाचार के पीछे  सबसे प्रमुख कारण है ।

(3) भारत के बुद्धिजीवियों ने छात्रों/कार्यकर्ताओं को इस तथ्य/सच से वंचित रखा कि  1930 के दशक में अमेरिका की संघीय सरकार ने कल्याण राज्य का निर्माण केवल इस कारण से किया कि वहां की जनता  पूर्ण रूप से अस्त्र शस्त्र सुसज्जित  थी।  इसके बजाय भारत के बुद्धिजीवियों ने ये अफवाह फैलाई कि 1930 के दशक में कल्याण राज्य का उदय इस कारण हुआ कि वहाँ के नागरिकगण अनुभवी/समझदार थे। इस प्रकार गरीबी का सारा आरोप वे भारत के नागरिकों पर ही डाल देते हैं ।

            सार ये कि भारत के बुद्धिजीवी भारतीय लोकतंत्र को बौना ही बनाये रखने पर जोर देते हैं – जिसमें कोई  रिकॉल प्रणाली न हो, ज्यूरी प्रणाली न हो, प्रशासनिक तथा न्यायतंत्र के लिए कोई चुनाव न हो तथा हम आम जनता के पास हथियार न हो।  और जब लोकतंत्र न होने की कमी की वजह से गरीबी से मौतें होती हैं, भ्रष्टाचार बढ़ता है तथा सैन्य कमजोरी बढ़ती है तो वे तुरंत हम आम जनता, हमारी राजनैतिक संस्‍कृति तथा धर्म पर दोष मढ़ देते हैं।

 

(6.23) `प्रजा अधीन-राजा`/`राईट टू रिकाल`(भ्रष्ट को नागरिकों द्वारा बदलने का अधिकार) के विरोधी , नकली `प्रजा अधीन-राजा`-समर्थक के लक्षण / चिन्ह और चालें

`प्रजा अधीन-राजा` कार्यकर्ता मित्रों ,

कृपया ध्यान दें कि अभी `राईट टू रिकाल`/`प्रजा अधीन-राजा` नाम लोगों में बढ़ता जा रहा है | और नेताओं पर, अपने कार्यकर्ताओं द्वारा दबाव पड़ रहा है , `राईट टू रिकाल , नागरिकों द्वारा ` के बारे में बात करने के लिए | इसीलिए , नेताओं को अब मजबूरी से `प्रजा अधीन-राजा`/`राईट टू –रिकाल, नागरिकों द्वारा` के बारे में बात करने पर मजबूर हो जाते हैं |

लेकिन `आम-नागरिक`-विरोधी लोग असल में `भ्रष्ट को नागरिक द्वारा बदलने/सज़ा देने के तरीके/प्रक्रियाएँ`(राईट टू रिकाल/प्रजा अधीन राजा) नहीं चाहते |

उनको परवाह नहीं है कि देश विदेशी कंपनियों और विदेशी लोगों के हाथ बिक जायेगा और 99% देशवासी लुट जाएँगे |

65 सालों से , लोग ऐसी प्रक्रियाएँ/तरीके मांग रहे हैं , जिसके द्वारा आम नागरिक भ्रष्ट को बदल सकते हैं /सज़ा दे सकते हैं और पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली(सिस्टम) की भी मांग कर रहे हैं | (`पारदर्शी` का मतलब, वो शिकायत/प्रस्ताव है जो कभी भी देखि जा सकती है और कभी भी जाँची जा सकती है, किसी के भी द्वारा, कभी भी और कहीं भी, ताकि कोई नेता, कोई बाबू, कोई जज या मीडिया उसे दबा नहीं सके |)

लेकिन `राईट टू-रिकाल`के विरोधी ये मांग को दबाते आ रहे हैं |

उसके लिए वे कुछ तरीकों का इस्तेमाल करते हैं, उन में से कुछ की लिस्ट यहाँ नीचे है-

1) वे अपने कार्यकर्ताओं को क़ानून-ड्राफ्ट(नक्शा) की बात करने के लिए भी मना करते हैं, क़ानून-ड्राफ्ट (नक्शा) को पढ़ने के लिए भी मना करते हैं, क़ानून-ड्राफ्ट (नक्शा) लिखना तो दूर की बात है | वे हवा में बात करते हैं , ना तो वो किस देश और जगह की प्रक्रिया की बात कर रहे हैं, बताते हैं, ना तो उसका नाम बताते हैं, न ही उसका ड्राफ्ट देंगे |

 

क़ानून-ड्राफ्ट को पढ़ना और लिखना वकीलों का काम नहीं है, ना ही जजों का , ना ही सांसदों का , लेकिन नागरिकों का काम है !! जी हाँ, आप नागरिकों को क़ानून-ड्राफ्ट सांसदों को देना होता है, जो तब क़ानून-ड्राफ्ट पास करवाते हैं सांसद में | वकीलों का काम क़ानून-ड्राफ्ट (नक्शा) बनाना नहीं है, उनका काम मामले लड़ना है, जजों का कम क़ानून बनाना नहीं, उनका काम फैसले देना है |

 

`प्रजा अधीन-राजा` के विरोधी दूसरों को क़ानून-ड्राफ्ट पढ़ने से रोकते हैं , कार्यकर्ताओं को ऐसे काम में लगवा कर जो भ्रष्टाचार, गरीबी कम नहीं करते जैसे स्कूल चलाना,योग सीखाना , विपक्ष के पार्टियों या अन्य नेताओं के खिलाफ नारे लगाना , किसी उम्मीदवार के लिए चुनाव प्रचार-अभियान करना , चरित्र(अच्छा व्यवहार) बनाना , आदि |

 

लेकिन एक बार भी कार्यकर्ताओं को क़ानून-ड्राफ्ट पढ़ने के लिए नहीं कहते , उनपर चर्चा करना तो दूर की बात है |

 

इसीलिए , क़ानून-ड्राफ्ट पढ़ना शुरू कर दें और क़ानून-ड्राफ्ट पढ़ना शुरू कर दें और उनपर अपनी राय दें , ड्राफ्ट को बताते हुए | और कुछ क़ानून-ड्राफ्ट पढ़ने के बाद और उनपर कमेन्ट/राय देने के बाद , आप ड्राफ्ट लिख भी पायेंगे |

यदि आम नागरिक , अपना ये कर्तव्य/काम करना शुरू कर दें, तो कोई भी गलत और जन-विरोधी क़ानून और शब्द नहीं कह सकेगा |

2) `प्रजा अधीन-राजा` के विरोधी और जाली-`प्रजा अधीन-राजा`-समर्थक कभी भी सही तुलना और जांच/विश्लेषण नहीं करेंगे |

 

वे कुछ ऐसे दो मुश्किल शब्दों का इस्तेमाल करते हैं, जिससे दूसरा व्यक्ति चकरा जाये  और निराश हो जाये और कभी क़ानून-ड्राफ्ट को ना तो पढ़े , न तो चर्चा करे | और वे हमेशा एक-तरफ़ा चर्चा करेंगे |

कृपया उनको तुलना करने के लिए कहें किसी भी मानी गयी परिस्थिति के लिए , पहले वर्त्तमान क़ानून के अनुसार उस पारिस्थि को देखें , फिर यदि उनका पसंद का क़ानून-ड्राफ्ट लागू होता है, या फिर जब `प्रजा-अधीन-राजा` के क़ानून-ड्राफ्ट या अन्य ड्राफ्ट लागू होते हैं उस पारिस्थि की तुलना करें और फैसला करें कि कौन से ड्राफ्ट देश के लिए फायदा करेंगे और कौन से देश को नुकसान करेंगे |

 

उदाहरण के लिए , जाली `प्रजा अधीन-राजा`-समर्थक अक्सर कहते हैं कि करोड़ों लोगों को ख़रीदा जा सकता है यदि `प्रजा अधीन-राजा ` के तरीके लागू होते हैं, लेकिन वे कभी बी इसकी तुलना अपने पसंद के क़ानून-ड्राफ्ट या आज के क़ानून –ड्राफ्ट या तरीकों से नहीं करते क्योंकि इन तरीकों/प्रक्रियाओं में कुछ ही लोग होते हैं ,जो विदेशी कंपनियों को खरीदना होता है प्रशाशन पर काबू पाने के लिए |

3) वे हमेशा कहते हैं कि वे `प्रजा अधीन-राजा`/`राईट टू रिकाल` का समर्थन करते हैं लेकिन कभी भी नहीं बताते कि कौन से पद के लिए वे `प्रजा अधीन राजा` का समर्थन करते हैं ? प्रजा अधीन-सरपंच, प्रजा अधीन-मायर/महापौर जैसे चिल्लर या प्रजा अधीन-प्रधानमंत्री, प्रजा अधीन-लोकपाल या प्रजा अधीन-मुख्यमंत्री | वे छोटे पदों के लिए अभी `प्रजा अधीन-राजा`/राईट टू रिकाल लाना चाहेंगे और ऊपर के पदों के लिए अगले जन्म में राईट टू रिकाल लाना चाहेंगे |

 

उनसे पूछें इसको स्पष्ट/साफ़ बताने के लिए कि वो कौन से पद पर `राईट टू रिकाल` का समर्थन करते हैं और उसका क़ानून-ड्राफ्ट देने के लिए जिसका वे समर्थन करते हैं |

हम उच्च-पदों के लिए आज और अभी `राईट टू रिकाल`(भ्रष्ट को निकालने का नागरिकों का अधिकार)  चाहते हैं क्योंकि बिना उसके देश को बहुत नुकसान होगा |

4) वे कहते हैं कि वे `राईट टू रिकाल`/`प्रजा अधीन-राजा` का समर्थन करते हैं, लेकिन उसे `बाद में ` लायेंगे ( अगले जन्म में) | इसके लिए कुछ बहाने जो वो बोलते वो है-

क) अभी सरकार इसको पास नहीं करेगी |

`प्रजा अधीन-राजा` के विरोधियों से पूछें कि क्या हमें सरकार की इच्छा के हिसाब से जाना चाहिए कि करोड़ों लोगों की इच्छा के अनुसार ?

ख) सभी क़ानून के सुधार एक साथ नहीं आ सकते |

`प्रजा अधीन-राजा` के विरोधियों से कहें कि लोग 50-100 सालों के लिए इन्तेजार नहीं करना चाहते , सभी कानूनों में सुधार लाने के लिए |

यदि `पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली(सिस्टम) आ जाये तो सभी सुधर कुछ ही महीनों में आ जाएँगे|

कृपया इस प्रणाली (सिस्टम) को www.righttorecall.info/406.pdf  में देखें |

ग) हमारी एकता भंग हो जायेगी |

उनसे कहें कि हम एकता ही चाहते हैं, इसीलिए ये जन-हित की धाराएं आपके ड्राफ्ट में जोड़ने के लिए कह रहे हैं | और एकता चाहते हैं , तो `पारदर्शी शिकायत प्रणाली (सिस्टम) को क्यों नहीं लागू करवाते ,जो देश के लोगों को एक होने में मदद करता है |

घ) हम पहले सांसद चुन कर सरकार लायेंगे , फिर `प्रजा अधीन-सांसद` के ड्राफ्ट बनायेंगे और ये क़ानून लायेंगे |

उनसे कहें कि कभी नागरिकों के नौकर, सांसद, मंत्री, प्रधानमंत्री कभी अपने ऊपर अपने मालिक, 120 करोड़ जनता का लगाम आने देंगे ? वे तो सत्ता में आने के बाद , विदेशी कंपनी से रिश्वत के पैसे लेकर, कोई गुप्त विदेशी खाते में डाल देंगे  और `प्रजा अधीन-राजा` /`राईट टू रिकाल` को रद्दी में डाल देंगे | ये क़ानून लाना तो केवल देश के करोड़ों मालिक , करोड़ों नागरिकों के जनता के नौकर के ऊपर दबाव से ही आ सकता है |

इसीलिए , उनसे कहें कि अभी सांसदों से या अपनी पार्टी से कहें कि अपनी पार्टी के घोषणा-पत्र में `प्रजा अधीन-सांसद` आदि `प्रजा अधीन-राजा` के ड्राफ्ट डालें |

5) `प्रजा अधीन-राजा` के विरोधी कहेंगे कि कि एक नेता को समर्थन करो, जो क़ानून-ड्राफ्ट को लागू कराएगा और वो बोलते हैं कि उस नेता के सार्वजनिक/पब्लिक काम पर कोई भी न बोले क्योंकि उन्हें लगता है कि इससे उनके पसंद के नेता की बदनामी हो रही है |

कृपया उनको बताएं कि ड्राफ्ट हमारा नेता है | बिना ड्राफ्ट के , सरकारी तंत्र/सिस्टम में कोई भी बदलाव संभव नहीं है ,बुरा या अच्छा | उनसे पूछें कि क़ानून-ड्राफ्ट पर अपना रुख बताएं ,कि क्या वे उसको समर्थन करते हैं या विरोध करते हैं | यदि हमारे नेता, ड्राफ्ट का समर्थन करते हैं, तो उनको कहें कि हमारे नेता, ड्राफ्ट को अपने नेता से मिलवाएं और उनके नेता से पूछें कि वो क़ानून-ड्राफ्ट का समर्थन करते हैं या विरोध |

हम कोई भी व्यक्तिगत/निजी टिपण्णी/बात नहीं करते हैं जैसे `क.ख.ग` का चरित्र(बर्ताव/व्यवहार) ऐसा है,या `क.ख.ग` के पिता/माता ऐसे हैं` आदि | हम केवल उनके सार्वजनिक/पब्लिक काम पर टिपण्णी/बात करते हैं,कि वो ईमानदार हैं या बेईमान है, उसी तरह जिस तरह लोग सड़क-बनने के देख-रेख करने वाले/निरीक्षक के काम पर बोलते हैं| अब यदि आप कहते हो कि सड़क-बनने के बनने वाले पर कोई टिपण्णी/बात ना करें , तो पहले तो आप अपना नागरिक का काम नहीं कर रहे, और हम को भी अपना कर्तव्य करने से रोक रहे हैं, जो देश के लिए खतरनाक है |

क्या ये पक्षपात/तरफदारी नहीं है यदि मैं उन सरकारी नौकरों पर बात करूँ जो मेरे सम्बन्ध में नहीं हैं, या जो मैं पसंद नहीं करता और उन सरकारी नौकरों पर नहीं बोलूं जो मुझे अच्छे लगते हैं या मेरे सम्बन्ध में है ? क्या देश ज्यादा जरूरी है या व्यक्ति ?

6) `प्रजा अधीन-राजा` के विरोधी कहते हैं कि वे `प्रजा अधीन-राजा` को समर्थन करते हैं, लेकिन कभी भी उसको समर्थन करने या उसके क़ानून-ड्राफ्ट लागू करवाने के लिए कुछ भी नहीं करते |

 

उनको बोलें कि अपने प्रोफाइल नाम के पीछे लिखें `प्रजा अधीन-लोकपाल`या `राईट टू रिकाल नागरिकों द्वारा` आदि |

उनको प्रक्रियाएँ/तरीकों के बारे में पर्चे बांटने के लिए कहें (www.righttorecall.info/406.pdf )

 

या उनको समाचार-पत्र में प्रचार देने के लिए कहें, जो उनके नेता, सांसद, विधायक आदि से उनका `प्रजा अधीन-राजा` के ड्राफ्ट के बारे में रुख साफ़ करने के लिए पूछे और ये क़ानून-ड्राफ्ट के धाराओं को अपने कानूनों या घोषणा पत्र में जोड़ने के लिए बोले |

और उनको बोलें कि अपने संस्था के लोगों को `प्रजा अदीन-राजा` के प्रक्रियाएँ/तरीके और क़ानून-ड्राफ्ट के बारे में बताएं |

और उनको पूछें कि वे क्या कर रहे हैं, इन क़ानून-ड्राफ्ट को लागू करने के लिए |

 

7) `प्रजा अधीन-राजा` के विरोधी / नकली `प्रजा अधीन-राजा`-समर्थक कोशिश करेंगे आप को बेकार के बिना क़ानून-ड्राफ्ट के चर्चा में उलझाने के , और आपका समय बरबाद करने के लिए, जो समय आप दूसरों को क़ानून-ड्राफ्ट के बारे में बताने में लगा सकते हो |

साफ़ मना कर दो बेकार के समय-बरबादी करने वाले बिना क़ानून-ड्राफ्ट के चर्चाओं पर बात करने के लिए | `प्रजा अधीन-राजा` के विरोधी को बोलें कि पहले ड्राफ्ट पढ़ें | उसको क़ानून-ड्राफ्ट दें | और उसको बोलें , कि अनपढ़ बही क़ानून-ड्राफ्ट समझ सकते हैं |

और उसको बोलें कि धाराओं का जिक्र /उलेख करे ,अपनी बात रखते समय |

8) `प्रजा अधीन-रजा` के विरोधी / नकली `प्रजा अधीन-राजा`-समर्थक घंटो-घंटो देश की समस्याओं पर  बात करेंगे , लेकिन एक मिनट भी समाधान पर बात नहीं करेंगे और कभी भी वे क़ानून-ड्राफ्ट नहीं देते जो गरीबी, भ्रष्टाचार आदि कम करेंगे | वे कुछ प्रस्ताव जरुर दे सकते हैं |

 

उनको कहें कि उनके प्रस्तावों के लिए ड्राफ्ट दे जो देश की मुख्य समस्याओं जैसे गरीबी, भ्रष्टाचार का समाधान करे क्योंकि सरकार में लाखों कर्मचारी होते हैं और इन कर्मचारियों को आदेश या क़ानून-ड्राफ्ट चाहिए होते हैं , इन प्रस्तावों को लागू करने के लिए | प्रस्ताव उतने ही अच्छे या बुरे हैं जितने कि उनके ड्राफ्ट |

9) कई `प्रजा अधीन-राजा` के विरोधी / नकली `प्रजा अधीन-राजा`-समर्थक सही रुख नहीं लेंगे कि वे `प्रजा अधीन-राजा` ड्राफ्ट का समर्थन या विरोध करते हैं जो करोड़ों लोगों के हित में है या दूसरे ड्राफ्ट जो कुछ ही लोगों का फायदा करते हैं जैसे विदेशी कम्पनियाँ आदि |

उदाहरण., वे बोलते हैं कि वे `जनलोकपाल बिना `राईट टू रिकाल-लोकपाल,नागरिकों द्वारा`  क़ानून-ड्राफ्ट का समर्थन करते हैं या विरोध करते हैं या वो `जनलोकपाल `राईट टू रिकाल-लोकपाल , नागरिकों द्वारा के साथ` ड्राफ्ट का सम्रथन करते हैं या विरोध करते हैं |

वे कोई साफ़ रुख इसीलिए नहीं करते क्योंकि उनका अपना स्वार्थ होता है , उदाहरण., प्रायोजक उन्हें पैसे देना बंद कर देंगे यदि वे कहेंगे कि वे `प्रजा अधीन-लोकपाल` या अन्य कोई `भ्रस्त को नागरिकों द्वारा बदलने का अधिकार` की प्रक्रिया का समर्थन करते हैं तो |

और यदि वे कहते हैं कि `प्रजा अधीन-राजा` के प्रक्रियाओं का विरोध करते हैं, तो उनकी पोल खुल जायेगी कि वे आम नागरिक-विरोधी हैं |

इसीलिए वे कोई साफ़ उत्तर/जवाब नहीं देते और कोई रुख/निश्चित फैसला नहीं लेते |

कभी भी कोई चर्चा में आगे न बढ़ें , जब तक कि `प्रजा अधीन-राजा` के विरोधी का रुख साफ़ न हो जाये क्योंकि ऐसे चर्चाएं केवल समय की बर्बादी ही होगी , समय जो आप इस्तेमाल/प्रयोग कर सकते हैं दूसरे नागरिकों को `प्रजा अधीन-राजा`के प्रक्रियाओं/तरीकों के बारे में जानकारी देने के लिए |

और एक बार , वो व्यक्ति अपना स्पष्ट/साफ़ रुख ले लेता है, तो तभी चर्चा में आगे बढ़ें, और फिर उनको कहें कि अपनी बात रखने के साथ , वे बताएं कि कौन से ड्राफ्ट और धाराओं के बारे में बात कर रहे हैं |

10) `प्रजा अधीन-राजा` के विरोधी बहुत बार ये दावा करते हैं कि `भ्रष्ट को नागरिकों द्वारा बदलने`की परक्रियें/तरीके “संभव नहीं” हैं या “ संविधान के खिलाफ” हैं |

 

उनसे सबसे पहले पूछें कि ये साफ़ करें  कि कौन सी प्रक्रिया/तरीकों की बात कर रहे हैं | और उस धारा को बताएं जो संविधान के विरुद्ध है और वो धारा , संविधान के कौन सी धारा के विरुद्ध है |

उनको पूछें कि प्रस्तावित `प्रजा अधीन-राजा` की प्रक्रिया/तरीका में से कौन सी धारा संभव नहीं है और कैसे ? क्या इसीलिए संभव नहीं क्योंकि लोग उतनी रिश्वत नहीं ले पाएंगे  या कि वो लागू नहीं हो सकती है और उसे लागू करने में क्या परेशानी आ रही है |

उनसे पूछें कि वे `हस्ताक्षर(साइन)-आधारित` भ्रष्ट को नागरिकों द्वारा बदलने की प्रक्रिया/तरीका (जहाँ लोगों को हस्तक्ष इकट्ठे करने होते हैं) या हाजिरी-आधारित भ्रष्ट को नागरिकों द्वारा बदलने की प्रक्रिया/तरीका (जहाँ लोगों को कलक्टर के दफ्तर खुद जाना पड़ता है ,शिकायत लिखने या पटवारी के दफ्तर खुद जाना पड़ता है , पहले से दी हुई शिकायत पर अपनी हाँ/ना दर्ज करने ) ?

उनसे पूछें कि वे `सकारात्मक` रिकाल (भ्रष्ट को बदलने की प्रक्रिया/तरीका नागरिकों द्वारा) की बात कर रहें हैं (जिसमें लोगों को विकल्प ढूँढना होगा वर्त्तमान `पब्लिक के नौकर` को बदलने के लिए ) या नकारात्मक रिकाल की बात कर रहे हैं (जिसमें लोगों को वर्त्तमान `पब्लिक के नौकर` के खिलाफ मत डालना होता है, उसे निकालने के लिए) ?

`सकारात्मक` रिकाल अव्यवस्था की स्तिथि कम करता है , जो पद खाली रहने से होती है और ये भ्रष्ट (अधिकारी) को नागरिकों द्वारा हटाना भी आसान बना देता है , क्योंकि `नकारात्मक` रिकाल में , नागरिक भ्रष्ट (अधिकारी) को नहीं हटाएंगे क्योंकि उन्हें दर है कि अगला अधिकारी/व्यक्ति इससे भी बुरा हो सकता है | `सकारात्मक` रिकाल ये संभावना समाप्त कर देता है कि कोई व्यक्ति अपने पद से निकाला जायेगा कुछ ऐसा न कर पाने पर , जो कोई दूसरा भी नहीं कर सकता हो , क्योंकि नागरिक देखेंगे कि विकल्प/दूसरा व्यक्ति भी कर नहीं सकता |

 उनसे पूछें कि वो `राईट टू रिजेक्ट` की जो बात कर रहे हैं, वो एक बटन है जो हर पांच साल दबा सकते हैं (यानी इनमें से कोई नहीं) या `राईट टू रिजेक्ट,किसी भी दिन, नागरिकों द्वारा` /

 (राईट टू रिजेक्ट हर पांच साल ` से कोई भी बदलाव नहीं आएगा | क्यों? क्योंकि ज्यादातर वोट वैसे भी किसी पार्टी के खिलाफ होते हैं , जैसे जो कांग्रेस से नफरत करता है, उनके लिए और कोई चारा नहीं कि वे भा.ज.पा. के लिए वोट डालें ताकि कांग्रेस न जीत पाए और ऐसे ही भा.जा.पा से नफरत करने वाले कांग्रेस को वोट देंगे, `इनमें से कोई भी नहीं` बटन होने के बावजूद | इसीलिए `राईट टू रिजेक्ट हर पांच साल , कोई भी बदलाव नहीं लाएगा |)

उसको पूछें कि पूरी परिस्स्थिति बताएं अपना दावा को समझाने के लिए , क़ानून-ड्राफ्ट और धाराएं बताते हुए |

 11) ज्यादातर `प्रजा अधीन-राजा`के विरोधी , विदेशी कंपनियों और अन्य कंपनियों के मालिकों की तरफदारी करते हैं |
कम्पनियाँ `काम के समझौते` बनाती हैं, जिसमें `मर्जी पर कभी भी ` निकाल देने की शर्त लिखी होती है, वो भी बिना कोई सबूत दिए , कोई कारण-अच्छा, बुरा, या बिना कोई कारण दिए

 इसके आलावा , एक `परखने का समय` भी होता है, जिसमें मालिक अपने मजदूरों को कभी भी निकाल सकता है, बिना कोई कारण दिए |

 लेकिन सबूत-भगत (सबूतों की मांग करने वाले) अपनी सबूत की मांग सिर्फ आम नागरिकों के लिए करते हैं | वे कहते हैं कि ये अनैतिक है, कि किसी को बिना सबूत के निकालना | वो बड़े आराम से ये ही मुद्दा गोल कर देते हैं, जब कंपनियों के मालिकों के अधिकारों की बात होती है| तब वे कहते हैं ,कि कोई भी सबूत देने की मालिकों को जरूरत नहीं है और वो अपने कर्मचारी को निकाल सकता है , बिना कोई सबूत के !!

 क्या ये खुला भेद-भाव नहीं है ? क्या ये संविधान के खिलाफ नहीं है ?

 हम, आम नागरिक ,  कंपनी मालिकों के समान अधिकार की मांग करते हैं |

जैसे कंपनी मालिकों को बिना कोई सबूत के , अपने कर्मचारियों को निकालने का अधिकार है, हम 120 करोड़ ,इस देश के मालिक , हमारे द्वारा देश को चलाने के लिए रखे गए नौकर, प्रधान-मंत्री, मुख्यमंत्री, लोकपाल,जज, और अन्य जरूरी अधिकारी को निकालने का अधिकार होना चाहिए ,बिना कोई सबूत | हमारे पास `राईट टू रिकाल(भ्रष्ट को बदलने का अधिकार), बिना कोई सबूत के ` होना चाहिए |

12)  एक और चीज जो `प्रजा अधीन-रजा` के विरोधी बोलते हैं कि ` हमें क्यों सेना को मजबूत बनाने के लिए पैसे देना चाहिए टैक्स के रूप में , जैसे `विरासत टैक्स`, सीमा-शुल्क , `संपत्ति टैक्स` आदि ? वे अपने बारे में अधिक सोचते हैं, बजाय कि देश के |

अरे, यदि वे ये सब टैक्स नहीं देंगे , तो देश की सेना, पोलिस और कोर्ट देश की सुरक्षा नहीं कर पाएंगी , विदेशी कंपनियों और देशों को हमें गुलाम बनाने से , और सबसे पहले तो पैसे-वाले ही लूटे जाएँगे , और देश का 99% धन लूट लिया जायेगा |

और यदि कोई अपना धन-संपत्ति खुद सुरक्षा करने की कोशिश करता है , तो उसको कहीं ज्यादा खर्च करना होगा , मिलकर धन (सामूहिक धन-संपत्ति) की सुरक्षा करने पर जो खर्च होगा, उसकी तुलना में  |

इसीलिए दोनों, आर्थिक(पैसे ) के नजरिये से और अच्छे-बुरे(नैतिक) के नजरिये से , ज्यादा पैसे-संपत्ति वालों को ज्यादा टैक्स देना चाहिए , कम पैसे और संपत्ति वालों कि तुलना में |

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कुछ `प्रजा अधीन-राजा` के विरोधी / जाली `प्रजा अधीन-राजा`-समर्थक अपने रुख पर जमे रहेंगे , कुछ `प्रजा अधीन-राजा` के समर्थक भी बन जाते हैं , सच्चाई जानने के बाद |

लेकिन यदि व्यक्ति, क़ानून-ड्राफ्ट पर बात करने से मना कर दे, अपना रुख स्पष्ट/साफ़ करने से मना कर दे, तो उसके साथ आगे चर्चा बंद कर दें , क्योंकि ये केवल समय की बरबादी ही होगी , वो समय जो दूसरों को `प्रजा अधीन-राजा` के क़ानून-ड्राफ्ट की जानकारी देने के लिए प्रयोग /इस्तेमाल कर सकते हैं |

उन लोगों को बोलना चाहिए कि ` हमें तुमसे चर्चा नहीं करनी क्योंकि तुम अपना नागरिक का कर्तव्य भी नहीं पूरा कर रहे, क़ानून-ड्राफ्ट ना पढ़ कर | हमें और दूसरों को कम से कम अपना कर्तव्य पूरा करने दो |`

(6.24) कृपया प्रक्रियाओं और क़ानून-ड्राफ्ट / मसौदों पर ध्यान केंद्रित करें ना कि कानूनों के नाम या व्यक्तियों पर जिसने ये क़ानून-ड्राफ्ट बनाएँ हैं क्योंकि नाम धोखा दे सकते हैं

बिका हुआ मीडिया/पैड मीडिया ये कहता है कि “नीतिश कुमार अत्यंत प्रतिबद्ध है `राईट टू रिकाल /भ्रष्ट को निकालने का अधिकार` के प्रति | 1975 से वो राईट टू रिकाल/प्रजा अधीन राजा का समर्थन कर रहा है |  “ ऐसा है , कि वो कई बार सांसद रहा है 1975 से |और उसके पार्टी में भी कई सांसद हैं | नितीश कुमार या उसके कोई भी सांसद ने कभी भी प्रजा अधीन सांसद क़ानूनी मसौदा/क़ानून-ड्राफ्ट का प्रस्ताव नहीं किया संसद में | उसने कभी भी प्रजा अधीन प्रधान मंगरी,सुप्रीम कोर्ट जज को लागू करने के लिए कोई प्रक्रिया या क़ानून-ड्राफ्ट /मसौदा का प्रस्ताव नहीं किया | नितीश मुख्यमंत्री है छे सालों से | उसके राज्य के कोई भी जिलों में प्रजा अधीन पोलिस कमिश्नर नहीं है या प्रजा अधीन जिला शिक्षा अधिकारी | फिर भी वो ये दवा करता है कि वो `प्रजा अधीन राजा /भ्रष्ट को बदलने का अधिकार ` का समर्थक है |

और अंत में, नितीश कुमार ने राईट टू रिकाल कानून पार्षद के लिए स्वीकार किया |इसके कुछ विवरण देखते हैं-

“…-यदि दो तिहाई वोटर अपने चुनाव क्षेत्र से पार्षद के खिलाफ एक हस्ताक्षर वाली याचिका देते हैं शहरी विकास विभाग को , तो शहरी विकास विभाग उस याचिका की योग्यता पर गौर करेंगे और उस पार्षद के निष्काशन के लिए कदम उठाएंगे यदि वो आश्वस्त हो जाता है कि पार्षद ने दो तिहाई वोटरों को खो दिया है |”

अभी शहरी विकास विभाग का प्रभारी हस्ताक्षर की जांच कैसे करेगा? एक बैंक में, एक चेक एक दस्तावेज है जो बैंक द्वारा जारी किया जाता है  |और चेक स्वयं एक अर्ध-सबूत है| और बैंक के कर्क के पास हस्ताक्षर का नमूना है और ग्राहक के पास सूचना भी आ जाती है एस.एम.एस द्वारा या जब भी वो पासबुक अपडेट करवाता है | इसीलिए हस्ताक्षर आधारित दस्तावेज बैंक चेक काम करता है | लेकिन शहरी विकास अधिकारी के पास 1 % नागरिकों का भी हस्ताक्षर का नमूना नहीं है , तो वो हजारों हस्ताक्षरों की जांच कैसे करेगा उचित समय में ? और कैसे उसको पता लगेगा कि एक ही व्यक्ति ने सौ बार हस्ताक्षर नहीं किये हैं? और बिहार में, जहाँ साक्षरता दर 60 % से अधिक नहीं है, 67% का हस्ताक्षर भी कैसे लिया जा सकता है ?

 उपरोक्त क़ानून-ड्राफ्ट केवल ये ही दिखाता है कि नितीश बदमाश है और चोर आदमी है एक सुधारवादी के वेश में | कोई भी असली सुधारवादी ऐसा बेकार क़ानून-ड्राफ्ट नहीं देगा | लेकिन देखते जायें, बीका हुए मीडिया ये कहेगा है कि ये भारत में सबसे अच्छा सुधारों में से एक है |

 ( मैं मीडिया को “बिका हुआ /भुगतान किया हुआ (पैड मीडिया ) मीडिया “ इसलिए बोलता हूँ क्योंकि मुझे विश्वास है “ सभी समाचार या तो बीके हुए/भुगतान किये हुए हैं(पैड न्यूज़) या तो बलात् /जबरन हैं “ और “सभी चुप्पी या तो भुगतान किये हुए/बिके हुए हैं या तो बलात् /जबरन चुप्पी है”| “ और बल आसान नहीं है और वह दुर्लभ है | इसीलिए अधिकतरमामलोंमें, समाचार/खबरबिकेहुए /भुगतान किये हुए हैं(पैड न्यूज़)औरचुप्पीबिकेहुए/ भुगतानकियेहुएहैं | और समस्या का उपाय ये है कि प्रजा अधीन दूरदर्शन मुख्य कार्यकारी अधिकारी है जो “नागरिक द्वारा भुगतान की गया समाचार “ निर्मार्ण करेगा/बनाएगा और इसीलिए कम से कम मात्र में भुगतान चुप्पी होगी |)

(6.25) प्रजा अधीन राजा (राईट टू रिकाल) / भ्रष्ट को बदलने की प्रक्रिया अगले जन्म में !

केवल प्रजा अधीन राजा/भ्रष्ट को बदलने का क़ानून-ड्राफ्ट या पारदर्शी शिकायत प्रणाली के क़ानून-ड्राफ्ट का नाम ही `कार्यकर्ता` नेताओं को बेचैन कर देता है | वे इन्हें ना तो विरोध कर सकते हैं क्योंकि इससे उनकी कार्यकर्ताओं के सामने पोल खुल जायेगी कि वे आमजन विरोधी हैं | और यदि इसे समर्थन करते हैं तो उनके प्रायोजक धन देना बंद कर देंगे | इसीलिए वे ऊटपटांग कहकर `भ्रष्ट को निकालने का अधिकार` को टालने का प्रयत्न करते हैं जैसे पहले हमें ये/वो करना चाहिए और इसको अगले जनम में लाना चाहिए | या इस अधिकार को देने के लिए संविधान में बद्लाव चाहिए जिसके लिए बहुत समय चाहिए और इसीलिए अगले जन्म में आएगा | कोई एक-आध नेता ही इसका समर्थन करेंगे लेकिन अधिकतर नेता तो इसे टालते ही रहेंगे अगले जन्म के लिए लेकिन अधिकतर कार्यकर्ता इसका समर्थन करेंगे | इसीलिए हमें सीधे कार्यकर्ताओं से संपर्क करना चाहिए |

 

समीक्षा प्रश्न :

1. मान लीजिए किसी राज्य में 7 करोड़ दर्ज/रजिस्‍टर्ड मतदाता हैं । मान लीजिए, मुख्‍यमंत्री को 200 विधायकों का समर्थन प्राप्त है। मान लीजिए, मुख्‍यमंत्री को लगभग 1.5 करोड़ नागरिकों का सीधा अनुमोदन/स्वीकृति समर्थन प्राप्त है । तब किसी व्यक्ति को हमलोगों द्वारा मुख्‍यमंत्री को हटाने हेतु प्रस्‍तावित सरकारी अधिसूचनाओं(आदेश) के अनुसार मुख्‍यमंत्री को हटाने/बदलने के लिए कितने अनुमोदनों की आवश्‍यकता होगी?

2. मान लीजिए, किसी राज्य में 7 करोड़ दर्ज/रजिस्‍टर्ड मतदाता हैं । मान लीजिए, मुख्‍यमंत्री को 200 विधायकों का समर्थन प्राप्त है जिन्‍हें कुल 2 करोड़ मत मिले हैं। मान लें, मुख्‍यमंत्री को 2.2 करोड़ जनता का अनुमोदन/स्वीकृति है। तब किसी व्‍यक्‍ति को, मुख्‍यमंत्री को हटाने के लिए कितने अनुमोदनों की आवश्यकता होगी ?

3. नागरिकों और सेना के लिए खनिज रॉयल्‍टी (एम आर सी एम) सरकारी अधिसूचना(आदेश) के अनुसार कितने लोगों को एक नागरिक अपना अनुमोदन/स्वीकृति दे सकता है? ।

4. मान लें, 3 करोड़ नागरिक अपना अनुमोदन/स्वीकृति जमा/फाइल करते हैं। इसके बाद मान लीजिए, उनमें से 50 लाख लोग अपना अपना अनुमोदन/स्वीकृति रद्द/कैंसिल करव देते हैं। कुल जमा हुई फीस कितनी होगी?

5. मुख्‍यमंत्री के पद के लिए नाम दर्ज की फीस/शुल्‍क कितना है ?

अभ्यास :

1. जय प्रकाश नारायण ने अपने सहयोगियों को राईट टू रिकॉल का जो क़ानून-ड्राफ्ट संसद में जमा करने के लिए दिया था, कृपया उसे प्राप्त करें ?

2. प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल के वे क़ानून-ड्राफ्ट जो शौरी अथवा अन्य बी.जे.पी के सांसदों ने संसद में जमा किए, कृपया उन्हें प्राप्त करें ।

3. प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल के वे क़ानून-ड्राफ्ट जो एम एम एस या अन्य कांग्रेस सांसदों ,येचुरी अथवा अन्य सी पी एम सांसदों ने संसद में जमा किए, कृपया उन्हें प्राप्त करें ।

4. क्या आप इन सांसदों द्वारा संसद में जमा किये गए उपर्युक्त किसी क़ानून-ड्राफ्ट /ड्राफ्टों से सहमत हैं? 5. बताएं कि आपके अनुसार क्‍यों भारत के बुद्धिजीवी प्रधानमंत्री, मुख्‍यमंत्री आदि के विरूद्ध प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल के प्रारूप/क़ानून-ड्राफ्ट का विरोध करते हैं?

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